________________
अढारमो सैको
(१) कवि लक्ष्मीरत्न-संवत् १७४१-खेमा हडालियानो रास
दुहा आद्य जनेसर आद्य नृप आद्य पुरुष अवतार । भवभय भाव? भगवंत नरु करुणानिधी कीरतार ॥ १ ॥ प्रणमुं तास प्रथम चरण द्यो मुझ वचन विलास । सांभलज्यो भवीक जन्न हुँ रचुं म रास ॥२॥ कवण षेमो क्या हुवो प्रगट्यो कवण प्रकार । सानिद्ध करज्यो गुरू सदा कहु कथा तस सार ॥ ३ ॥ गुरु माता गुरु पीत्या कीजें गरु पाये सेव । ज्ञांन दीवाकर गुरु कह्या नमो नमो गुरुदेव ॥४॥ कुंभ बांध्युं जल रहे जल विना कुंभ न होई । ज्ञाने बांध्युं मन रहे गुरू विना ज्ञान न होई ॥५॥
चौपइ. राग रामगीरी जंबुद्वीप भरत एणे ठाम मध्यषंडे मोटा मंडाण । गुजर देस छे गुंणनीलो पावा नामें गढ बेंसणो॥१॥ गढ उपर छे सोभा घणि अढार भार वनराइ तणि । मोटा श्रीजीन तणा प्रसाद सरग सरीशुं मांडे वाद ॥२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org