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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य
५९.१
ते शल्यपर्वमां कथा सबंध कवीता किहे बांधीश प्रतीबंध ॥ ११ ॥ संवत सोल पंचावनो सार येष्ट शुद चोथ्य शनवार ॥ १२ ॥ ते दीन पूर्ण थई ए कथा बुद्धमांने बोलीश सर्वथा ॥ १३ ॥ गाई सांभलि तेहने वैकुंठवास बेहु करजोडी किहि वीष्णुदास ॥ १४ ॥
( ४ ) वैश्यकवि नाकर-सत्तरमो सैको - महाभारत आरण्यक पर्व (सं० श्री केशवराम शास्त्री )
प्रथम ते प्रणमी श्रीगणपतिनई जोडीनई बि पाणि ।
विधन हरु तम्यो कृपा करीनई आपु अविचल वाणि ॥ १ ॥ एकदंत ज शोभतु गजवदन शोभइ तेह |
दल देव दया करी निज बुद्धि आपु एह ॥ २ ॥
मोदक - आहार अंतर्ज्यामी कविनई करु पसाइ । संमुख स्वामी अवलोकतां बुद्धि-ज्ञान परिपूरण थाइ ॥ ४ ॥ देव दानव असुर किंनर स्तव गुणभंडार | मुहुनई दीन जाणी दामणु करु माहूरी सार ॥ ६ ॥ शुभ कारण प्रथम स्तवइ त्रैलोक मांहां देव । ताहरी कृपा विना पामइ नहीं बुद्धिज्ञान ज खेव ॥ ७ ॥ ते माटइ महाराज ! मुहुनई करुनई परम कृपाइ । इतिहास किहिवा बुद्धि माहूरी सफलित-हृदया थाइ ॥ ८ ॥ कहेश महापुराण नई कविता खोडि म देशु । मुझ बुद्धि-माने करूं रचना कृपा श्रीपरमेश ॥ १४ ॥
( पृ० ३ )
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