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५९२ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
(३) कवि श्री विष्णुदास-सत्तरमो सैको-महाभारत ( हस्तलिखित प्रति-श्रीफार्बस गुजराती सभा-अं० १३३ ) प्रभातकाल हवो सहु चाल्या करवा माहासंग्राम । दुर्योधन पांडव जीत्यानी करी हृदि शू हाम ॥७॥ त्यारि कर्ण किहि माहारी वीद्यानुं सकल कार्ण देषाओँ । कि पांडव मुझनि मारि कि हु तेहनि नाश पमाडु ॥ ८ ॥ आगि ईद्रि धनुष समयूँ फरशूरामनि हाथे । तेह वाय करि ग्रही युद्ध मि करवू पांडव साथे ॥९॥ अर्जुनना शरषी माहारि बाकी सर्ब सजाई होय । एहनि सारथी क्रष्ण छि तेहवो माहारि नथी कोय ॥१०॥ ते शरषो आपणि शल्य छि सत्य जाणो मनमांहि । ते माहारो सारथी होइ तो युद्ध करूं जै त्यांहि ॥११॥ दुर्योधन एहवू वाक्य सांभली मनमां थयो रलीआत्य । का कर्ण हुं सैन्य लेइनि आवू तुझ संघात्य ॥१२॥ पछि कर्ण सावधान थयो माहाधीर्यपणूं मन्य आंणी। तेणि समि वली शल्य प्रत्यि दुर्योधन बोल्यो वांणी ॥ १३ ॥ आहो ! ! ! शल्य तू माटि हुँ रणमां रुडं भाव्यो। कर्णतणूं सारथीपणूं करि ए प्रारथवा आव्यो ॥ १४ ॥ तुझ देषीनि ए समरांगण्य सुभट सहु को त्राहासि । यम अर्जुननि एक ऋष्ण त्यम कर्णतणि तू पासि ॥१५॥
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