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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य ५८९ इंदिइ वसि जु राख्यां आप त्यजूं कल्पना मन संताप । स्वामिशरण नवि मूकइ घडी मनसा मेहेलि संतोषि जडी । हेमकचोलू करि जो होइ घालई भीख नही को कोइ ॥ २०३॥ जइन तणी ल्यु जयणा सार वरतु वेदकर्म आचार । असुरतणु आंणु वीसास शेवु आदिपुरूष अविनाश । ए रजमांहि तज काढि जोइ 'सोले वाले गदीआणु होइ' ॥ २१९ ॥
द्वैतवीशी के उपवीत पेटि न वि भण्यां तरक म सूनति साथि जण्या । शिर नो लूचि श्रावक नीसरा फाटे कान न योगी गर्या । कर्मविकारि कर्यां आपणा ऊचनीच कूचा मन तणा ॥ २२२ ॥
(सोळमो सैको पूरो)
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