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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य
भइ दंभ भाइ दंभ जन सांभलु । महामोहि मझनई कयूं अरे वत्स ! अमरिख धरइ || कुलअंगार विवेकरिपु आपण कलहु करइ | तीरथि तीरथि मोकल्या शमदम संयम सार ॥ ऊपजवा दे अमरखे ते तूं बोल विचार ॥ २ ॥ ये मन कहियूं महाराजि ते तां कारय कीधूं आज मुगतिपुरी ये मांहि इशी मई वशि कीधी वाराणसी ॥ ३ ॥ निशि वेश्या मुख आसवपान दीहइ धूरत मांडइ ध्यान सर्वज्ञा दीक्षिता तापसा सकल लोक मई कीधा अश्या ॥ ४ ॥ दीपंथी गंगातीर त्रिभुवन - तापन उग्र शरीर दंभ करइ मनमांहि विचार जाणो करि आव्यु इहकार ॥ ५ ॥ तत्क्षणि आव्य सभा मझारि ते देखी कांपइ नरनारि । जन समोह जो सांचरइ खट दर्शननी नंदा करइ ॥ ६ ॥
गुरुतरमत प्राभाकर भाट्ट जन व्याकरण न जाणइ वाट । पाठइ भणी सकइ नवि वेद तु किम कहइ अर्थनु भेद ॥ ७ ॥ स्मृतिपुराण व्याससंवाद ज्योतिक न्याय कपिल काणाद । नाटक पिंगल सहित सही ए मूरख जन जाणइ नहीं ॥ ८ ॥ ब्रह्म एक नई जीव अनन्त जुआ शास्त्र कहइ वेदान्त | परतखिं वद विरोध अगाध बौद्ध विषइ केहु अपराध ॥ ९ ॥ तापस मुनि मसवासी सती कहइ इहकार किशां ए यति ? | शिखासूत्रनु कीधु नाश भिक्षा कारण ए संन्यास ॥ १० ॥ कपटई जंगम योगी थया त्रिडंडी बेहू भव गया । चारवाक खमणा खडभडइ आगइ हीन वली पडइ ॥ ११ ॥
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