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गुजराती भाषानी गुत्क्रान्ति कामिनीकंठि अलिंगित हाथ सभामांहि आव्या रतिनाथ ॥ ४६॥ रातां लोचन मदयौवन रूपई मोहि त्रिभोवन-जन्न । अबला अङ्गसंग उल्हसइ दुहुदिशि जोइ हलूइ हसइ ॥ ४७॥ करि धरि कूच मूछ वल भरइ क्रोध सहित वाणी ऊचरइ । किहां गयु ते पापाचरण येणई कयूं मोहनूं मरण ॥ ४८ ॥ रूप अनोपम चंचल नारि नमता पीन पयोधर भार । सोलकला मुख यिशु मयंक कटितटि झटित केसरी लंक ॥ ४९ ॥ हरिणाखी हंसगामिनी यौवन मदमाती कामिनी । दाडिमकली दंत निर्मला अधर सुरंग अंगि कोमला ॥ ५० ॥ कंकण हार चीर चूनडी मस्तकि मणिमण्डित राखडी । सवि शणगार करी सांचरी कामसहित सोहइ सुंदिरी ॥ ५१ ॥ रतिपति करइ विनोदइ वात कुसुम धनुष निज कोकिलनाद । वसंत अबला अंब अनेक अम्ह यीवतां किशु विवेक ॥ ५२ ॥ माहरां सकल सफल आयुध (मई) शुम्भ निशुम्भ कराव्या युद्ध । वध्यु सरिसु वानर वालि रावण-आइ हर्यु अगालि ॥ ५३ ॥ विश्वामित्र पराशर ईश मुझ भई कांपइ सुर तेत्रीश। ब्रह्मा लोकपितामह येह पुत्री सरिसु कर्यु सनेह ॥ ५४॥ इहिल्या सरिस विगूतु इन्द्र गुरुनारीशू रमिउ चन्द्र । त्रिभोवन कोई नथी ते सही ये माइ वशि आवइ नहीं ॥ ५५ ॥
(पृ० ५)
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उत्तम पात्र विवेक विचार त्यजीइ मोहादिक परिवार । बीजा अंकतणु आरंभ ते मांहि प्रथमइ आव्यु दंभ ॥१॥
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