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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
श्रद्धा भक्ति वैराग अति ध्यानविचार विवेक । साधन विना न पामी जोतां जन्म अनेक ॥ ९ ॥ शंकर करुणाकरतं प्रणमीजइ पदद्वन्द्व । येनी अनुकम्पा करी प्रापति परमानंद ॥ १० ॥ ( अमृत उदरि छि सुर तणइ तो हि तेह मरंत कंठि हलाहल विष वहइ जय जय ते जीवंत ) त्रीजा लोचननइ मिशइ ललाटि पावकरूप । परम तेज परगट कर्यू जाणे ज्योतिस्वरूप ॥ ११ ॥ जय जय जय युगदीश्वरी उमया उज्ज्वलअंगि । आदिशक्ति अंतर रही आलिंगी शिवलिंगि ॥ १२ ॥ अंतर मारुत नियमना नाडी सूक्षम तन्न । ब्रह्म रुद्र गुरु मुखि करी जाणइ योगीजन्न ॥
१३॥
( पृ० २ )
प्राण पवन मन समरसइ अनुभव करतां एह । सिहियई परमानंदनु वाधइ सदा सनेह ॥ १४ ॥ मुगति-मूल ए शांतरस नव रसनइ धुरि येह । मोक्ष-पणइ ते ( णइ) कारणि बोलिस महिमा तेह ॥ १५ ॥ आगइ नाटक बोलियां कविजन बहु महिमाइ ।
वली किशा कारणि करी कीधु तहूमो उपाइ ? ॥ १ 11 विवेक विचार विस्तरइ त्यजइ महाम्हो - दंभ |
भीम भइ ते (इ) कारण ए ग्रंथ तणु आरंभ ॥ १७ ॥ सांभलतां सुख पामीइ भणतां दुःख सवि जाइ । एहनु अर्थ विचारतां मति अतिनिर्मल थाइ ॥ १८ ॥
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