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सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य
जे फल हुइ मुक्तिपुरी साति रामनाम उच्चरइ प्रभाति । कान्ह चरित्र जिको नर भणइ एक चित्ति जिको नर सुणइ ||३४५ ॥
तीर्थ फल बोल्यूं जेतलं पामइ पूण्य सवितेतलं ।
पूण्यि संग सवि सज्जन मलइ पूण्यि आस मनोरथ फलइ ॥ ३४६ ॥ प्राकृतबंध कवित मति करी कलयुग कथा अभय विस्तरी । चाहूआण कुलि कीरति घणी पूरु आस सवि कह तणी ॥ ३४७ ॥ ( पृ० १०३ )
( ४ ) कवि- भीम - प्रबोधप्रकाश
( संपादक श्री० केशवराम शास्त्री, गु० व० सो० )
भाषानूं कारण नहीं कारण अर्थविशेष । सम्यक एह ऊपर कहूं पिंगलगाथा एक ॥ ३ ॥
ये अज्ञानि ऊपजइ विश्व चराचर शूर । किरण विषि दीसइ यथा मध्य दिवस जलपूर ॥ ५ ॥ येहूं स्वरूप विचारतां मोह निवर्तइ एह । कुसुमतणी माला विष यथा भुजंगम - देह ॥ ६ ॥ ( पृ० १ )
हरि सदा उपाशी आतमबोध अगाधि । सनातन आनंदघन वर्जित अखिल उपाधि ॥ ७ ॥
शास्त्रसम्पत्ति गुरुवचनि आत्मतत्त्व अनन्त । अनुभवतां जाणइ यति शमदम साधनवन्त ॥ ८ ॥
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