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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
तवगच्छ दिवायर लच्छिसायर सोमदेवसूरीसरो । श्रीसोमजय गणधार गिरूआ समयरत्न मुनीश्वरो । मालिनी छंदइ कय पबंधिइ तविया जिन ऊलट घणइ । मइ लहिउ लाभ अनंत मुनि लावण्यसमय सदा भणइ ॥२८॥ ( ऐतिहासिक राससंग्रह–भाग बीजो सं. श्रीविजयधर्मसूरि )
(२) कवि-नरसिंह महेता-संवत १५१२
हारमाला (संपादक श्री. केशवराम शास्त्री)
बाइ मुहुनिं हरि जोवानी टेव पडी माहरा नाथनिं न मूकू एक घडी । वेधलू मन अलगूं न रिहि [एहवी ] हरजीशुं प्रीत्य जडी-बाइ० आखा द्याढानो रली खपी आव्यो [माहरी ] भाभीई मूक्यूं न पाणी। मि जाण्यूं ध्रुव तणी पिरिं करूं भाभी नहीं गोराणी-बाइ० नामानूं छापरां छाहि आप्यूं कबीरानी अविचल वाणी । ते पांई तां हूं हएस भलेरो छबीलुजी मूकशि पाणी-बाइ० धन वृन्दावन धन ए भाभी धन यमुनानूं पाणी । धन नरसिंआनी जीभलडी पछि छबीलाजीनी वाणी-बाइ०
कोण छबीलो नि कोण छि नाथ कोणि दीधो ताहरि माथि हाथ ? विषया शृंगार मांहिं भीनो रहां हरि मलवानो ए मारग क्यहां ?
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