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सोळमो सैको
( १ ) कवि - लावण्यसमय- संवत १५८९ - खिमऋषिरास वगेरे भारति भगवति मनि धरी गुरूपय नमीय पवित्र । बोलिसु बुद्धइ आगलउं बोहातणउं चरित्र ॥ १ ॥ जस जसवाय अछइ घणउ जय ति जसभद्र सूरि । त्रीजउं कहीइ किन्ह रसि नांमई दुरीया दूरि ॥ २ ॥ प्रहि ऊगमि नितु प्रणमतां लहींई नवई निधान । भोजनि कूर कपूर रस भूप भला बहुमान || ३ ॥ कविजन कहिसई केतलां जेहना जेहवा ठाम । सुणज्यो सहु आदर करी आठ प्रभावक नाम ॥ ४ ॥
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चित्रकूटपासई वडगाम सुश्रावक बोहानूं ठाम । धनहीणउ रूपइ रूडली पंचद्रम सारु कूडली ॥ २२ ॥ करइ तेल - घतनुं व्यवहार चित्रकूट चउहटर वेचाई । पोढइ पाथरि लपठई पाईं ढली कूडली कर्मपसाय ॥ २३ ॥ ग्रामलोक मनि आवी मया आपिया पंच द्राम करि दया । वुहरी घृत वलिउ जब वली वागी ठेसि वली तिम ढली ॥ २४ ॥ जाई धर्मतणा भल भेद ही अडई वरु न आणइ पेद । परनई आपईं किंपि म जोइ जां आपा निज कर्म न होई ॥२५॥
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