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सोळमो अने सत्तरमो सैको
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वळी, आपेला ए शब्दो आपणी प्रचलित गुजरातीनी पासे ज आवी गया छे, ए बताववानो पण ए वधारे शब्दोना उल्लेखनो हेतु छे...
१८९ हवे क्रमप्राप्त सत्तरमी सदीनी त्रण कृतिओ अहीं लीघेली छे. पहेली गद्य कादंबरी, ते श्रीसिद्धिचंद्र (जैन) नी छे. तेनी साथे सत्तरमा सैकानो एक शिलालेख छे, जे, गाम अमरेलीने लगतो छे. बीजी कृतिमां महाभारत ते श्रीविष्णुदासर्नु छे अने त्रीजी कृति महाभारत-आरण्यकपर्व ते वैश्यकवि श्रीनाकरनी छे.
सिद्धिचंद्रना गुरु भानुचंद्रे कादम्बरीनी टीका लग्खी छे. तेमनाथी ते टीका पूरी न लखी शकाई. टीका लखतां लखतां बच्चे ज तेओ पंचत्व पाम्या एटले बाकीनो भाग तेमना शिष्य प्रस्तुत सिद्धिचंद्रे पूरो कर्यो छे. तेओ बादशाह अकबरना समसमयी हता एटले तेमनो सत्तरमो सैको सुनिश्चित छे, ते ज रीते महाभारतने गुजरातीमां ऊतारनार श्रीविष्णुदास तथा वैश्य कवि नाकरनो समय सत्तरमो सैको पण तेमनी ते ते कृतिओमां आपेलो छे. एथी तेओ विशे विशेष कांइ लखवानुं रहेतुं नथी.
१९० सिद्धिचंद्रनी गद्य कादंबरी तथा अमरेलीनो शिलालेख : नाम नाम
क्रि० क्रि० नदीनिं (-ने) घणूं करि (करे ) कहुं ( -ह्यु) तटिं (-टे) प्रसंन
भणई छइ) एक त्यहां (त्यां) चांडालीइं (-लीए) धरी भणइ छिं वचन शौद्रकंशूकनूं आवी छिं (छे) दीसि छ। एक समि (-में ) तम योग्य तेडी दक्षिण देशथी ते माटे कीधो मोकलो राजद्वारि (-रे) एह तमे राखो थया कहो* राजई (-जाए) प्रेमशू का
| मोकल्यो
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