________________
५४८
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
प्राचीनतानी छापवाळां रूपो पन्दरमी शताब्दीनी कृतिओमां आवे छे खरां, पण ते ओछां. त्यारे प्रस्तुत कृतिओमां नवीनतानी छापवाळां आवां रूपो वधारे वपरायां छे; जेमके-सुणज्यो, धननु, भाले, जयु, ढली, द्याढानो, यमुनानूं , वडना, छबीलाजीनी, शिवनी, गर्भवासतणूं, पोतानूं , मूंनिं, मुहुनि, मुहनिं, मूनें, तूनिं, त्यारि, ते वारि, माथि, नाथनिं, दामोदरें, सेवु, हरजिशें, कोद्रवमां, माहि, माहि, मांहिं, पिठु, वांचि, भाषायूँ , हरिनूं , येनु, वीनवू , कवू , करूं, नवखंडे, माधवि, देसि, नाथीउ, धरु, भरिउ, ग्यो, ग्या, आव्यु, दीधो, रह्यो, छूटशो, छोडशो, आप्यूं , रिहिशो, ग्यो, कह्यो, पूरिआं, आपी, प्रणमतां, ऊघडतुं, जागतां, सुणतां, देहरां, सगा, धोती, मोजां, अनुभवतां, जोतां, गिहिलो, आंधलो, नरसिंओ, आगलां वगेरे. जो के ए बधां रूपो छे तो सोळमी सदीनां छतां अहीं एमनो समय न जणाव्यो होय तो वांचनारा ए रूपोने वीसमी सदीनां ज कहे एवां ए छे. ___ वळी, केटलांक प्रांतिक उच्चारणो पण ए कृतिओमां देखा दे छे: ('वि' ने बदले 'व्य' ) व्यना, व्यचार, अहीं 'इ' ने बदले 'य' नुं उच्चारण थयेलुं छे अने ते वाग्व्यापारने अनुसरतुं छे.
नरसिंहनी अने क्वचित् भीमनी कृतिओमां एवां 'य' वाळां रूपो विशेष नजरे पडे छे. मन्य, गोव्यंद, कारज्य, क्यमे, म्यल्ये, प्रीत्य, रात्य, वन्य-(वनि).
मांडण अने भीमनी कृतिओमां 'ज' ने बदले “य' उच्चारण थयेलं जणाय छे : यम (जेम ) युगपति ( जुगपति ), युगदीश्वरी (जगदीश्वरी), यीवतां (जीवतां), येह (जेह), यिशू (जिशू), ये (जे). ___ ज्यां आपणे 'ओ' अने 'ए'नुं उच्चारण करिए छिए त्यां हजु सुधी उक्त कृतिओमां 'इ' नुं अने 'उ' नुं उच्चारण पण प्रवर्ते छे : मूकशि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org