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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति बारहवरिसहंतणउ नेहु किणि कारणि छंडिउ । एवडु निठुरपणउ कंइ मूसिउ तुम्हि मंडिउ । थूलिभद्द पभणेइ वेस अह खेदु न कीजइ । लोहिहि घडियउ हियउ मझ तुह वयणि न भीजइ ॥ १९ ॥ मह विलवंतिय उवरि नाह अणुराग धरीजइ । एरिसु पावसु कालु सयलु मूसिउ माणीजइ । मुणिवइ जंपइ वेस सिद्धिरमणी परिणेवा ।
मणु लीणउ संजमसिरीहिसुं भोग रमेवा ॥२०॥ भास-भणइ कोस साचउ कियउ नवलइ राचइ लोउ ।
मूं मिल्हिवि संजमसिरिहि जउ रातउ मुणिराउ ॥२१॥ उवसमरसभरपूरियउ रिसिराउ भणेइ । चिंतामणि परिहरवि कवणु पत्थर गिण्हेइ । तिम संजमसिरि परिचएवि बहुधम्मसमुज्जल।
आलिंगइ तुह कोस कवणु पसरंतमहाबल ॥२२॥ पहिलउ हिवडा कोस कहइ जुव्वणफलु लीजइ । तयणंतरि संजमसिरीहि सुह-सुहिण रमीजइ । मुणि बोलइ जि मइ लियउ तं लियउ ज होइ ।
कवणु सु अच्छइ भुवणतले जो मह मणु मोहइ ॥२३॥ भास-इण परि कोसा अवगणिय थूलिभद्दमुणिराइ ।
तमु धीरिम अवधारि-करि चमकिय चित्ति सुहाइ ॥२४॥ अइबलवंतु सु मोहराउ जिणि नाणि निधाडिउ । झाणखडग्गिण मयणसुभड समरंगणि पाडिउ।
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