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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
अस्मद् - पुरुष — हूं, अम्हे करिजडं ( हुं करूं, अमे करिए ) लेजउं ( हुं लउं के अमे लइए ), देजउं (दउं के दइए )
वा
प्रथम- पुरुष
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करत ( हुं तुं ते अमे तमे
लेअत ( देअत ( "
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श्रावक विनउ जिनरहई करिवउ ( श्रावके विनय जिननो करवो ) जन्मनउं फल लेजउं ( जन्मनुं फळ लेवुं ) देजउ (देवुं ) दानु देवउं ( दान देवुं ) अम्हे भीख जीमवी ( अमारे भीख जमवी) जूनउं वस्त्र पहिरवडं ( अमारे जूनुं वस्त्र पहेरवुं ) गुरि अणुजाणिउ चेलउ व्याकरण पढत ( गुरुए अनुज्ञात थयेलो चेलो व्याकरण भणत-भणे )
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कर्मणि
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तूं करिजे (तुं कर) हूं करिजउं ( हुं करूं ) कर्मणि तीणई कीजइत - ( ते वडे कराय)
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तेओ करत ) लेत )
देत )
भावे- - हुई अत - ( तेवडे होवाय - थवाय ) कर्तर अनुमति अर्थ
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त्री जो पु० - - करउ ( करो) लिउ ( " लातु " गुण ० -ल्यो ) दिउ (द्यो ) हुउ ( हो )
बीजो पु०
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तूं करि (कर) लइ (ले) दइ (दे) जा (जा) आवि (आव), पढि ( पढ), गुणि ( गुण गण)
कीजउ ( तारा वडे कराय) लीजउ ( लेवाय८८ लायताम् " गुण ० )
आशीर्वाद- -एउ राज्य करउ (ए राज्य करो ) एहना वइरी मरउ ( एना वेरी मरो )
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