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चौदमो अने पन्दरमो सैको ४६७ १६८ पन्दरमा सैकाना विशिष्ट प्रयोगो—कुलमंडन
संबंधक भूतकृदंतनो 'ई' प्रत्यय छे : करी, कुलमंडनना है विशिष्ट प्रयोगो .
. लेई, देई ( संबंधक भूतकृदंत )
शिष्य शास्त्र पढी अर्थ पूछइ. हेत्वर्थ कृदंतनो ' इवा' प्रत्यय छ: करिवा, लेवा, देवा.
कुंभकार घडा घडिवा माटी आणइ. हेत्वर्थ कृदंतनो 'ई' प्रत्यय पण छे : करी जाणइ, करी सका, लई जाणइ, लई सकइ, देई जाणइ, देइ सकइ.
वर्तमान कृदंतनो — अतउ' के 'तउ' प्रत्यय छे : शिष्य शास्त्र पढतउ हउं सांभलउं, करतउ, लेतउ (नरजाति) करती, लेती (नारीजाति) करतउं, लेतउं ( नान्यतरजाति)
करसणी हल खेडतउ बीज वावइ.
साधारण कर्तृसूचक कृदंतनो ‘णहार' प्रत्यय छे: करणहार, लेणहार, देणहार, धर्म करणहार जीव सुख प्रामइ. ___ कर्मणि वर्तमान कृदंतनो — ईजतउ' प्रत्यय छे : शिष्यिइं शास्त्र पढीजतउं हउं सांभलउं.
कीजतउ, लीजतउ, पढीजतउ, (नरजाति ), कीजती (नारीजाति ), कीजतउं ( नान्यतरजाति).
सूत्रधारइ कीजतउ प्रासाद अथवा कीजती वावी अथवा कीजतउं देहरउं लोक देखइ..
कुलमंडन कहे छे के कर्तरिप्रयोग ए 'पाधरी' उक्ति छे अने कर्मणि तथा भावे प्रयोग — वांकुडी' उक्ति छे. (पृ० २६६) आ बे
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