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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति । सोमसुंदरना
१६३ सोमसुंदर--(संवत्-१४१५) बीजा शब्दो
क्रि० बी० श० प्रामी-पामी–प्राप्त करी ठाकुर-ठाकुर-ठाकोर- धाडि-धाड एउ-हवो-थयो
मालिक चूंकिं-थूकवडे मारी-मारी
त्रिणि-त्रण मारीउ–मार्यो
आफणी-आफर९लीधउं-लीधुं
परस्परई-परस्पर - आपोआप-एनी मेळे जायु-जायो-जण्यो आषउ-आखोजु-जो पूछिउ-पूछ्यो क्षाति ख्याति तु-तो जाणिवु-जाणवो
गाढेरी-गाढ-घणी बेटउ-बेटो प्रामिउ-पाम्यु देषाडी-देखाडी बतावी बाकडा-बा
की बोकडा–बोकडा मूलगु-मूल-मुख्य-वडो ऊतरि-ऊतर पिरीआ–परिया वंशज पगरणि-पगरण-प्रसंग अहियासिया सह्याकेडई-केडे-पाछळ हवं-थयु
भीषारी-भीखारी सोनीया सोनैया ई-मूई–मरी रोती रहइ नहीं रोती रहे केडां-केडे-पाछळ कडाहि-कडाई सम-सम
विछूटी-बछूटी हवी-हुई-थई
पोटलउ-पोटलो-पोटलं भइंसा-भंसा-पाडा आणी-आणी-लावी पाउ-धरिया-प-धार्या
परहुणाना-परोणाना पाटकी-खाटकी तेडउ-तेड्यो अन्यात-अज्ञात छींक-छींक करउं छउं-करुं छु परहणउ-परोणो रूडां-रूडां देषउं-देखं छं
टुंठउ-ठुठं विरूआं–विरूप-वरवां देषइ-देखे छे धराइ-धराय (कर्मणि)
तूनारानउं–तूणारानु- -कद्रूपां परिणं-परण
__ तूंणनारनु पणि-पण लांपळ-नांखो जमहर-जौहर यमगृह परही-परी-परे–दूर
ऊपर
नहीं
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