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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
हकीकत गुणरत्ने पोते क्रियारत्नसमुच्चयनी विस्तीर्ण प्रशस्तिमां नोंधेली छे अने प्रशस्तिना बावनमा लोकमां ' श्रीचंद्रशेखर' ने पोताना प्रगुरु तरीके अने देवसुंदर ' ने पोताना गुरु तरीके तेमणे याद पण कर्या छे (श्लो० ५४).
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कुलमंडने पोताना औक्तिकमां गुरुरूपे चंद्रशेखरसूरिनुं अने देवसुंदरसूरिनुं एम बे नाम लखेलां छे, एथी जेओ कुलमंडननी गुरुपरंपराथी अपरिचित छे तेमने, एमना बे गुरु होवानो संदेह थवो स्वाभाविक छे; परंतु ऊपर कह्या प्रमाणे ' चंद्रशेखर ' एमना दादागुरु हता अने साक्षात् गुरु ' देवसुंदर' हता, एथी तेमणे ए बन्नेने पोताना ग्रंथमां संभार्या छे. एटले कुलमंडनसंबंधी बेगुरुवाळा संदेहने अवकाश ज नथी.
एमना समय पन्नरमा सैका विशे पण उपर्युक्त उल्लेखो स्पष्ट हकीकत आपे छे, एथी ए बाबत पण अशंक छे.
१५५ उक्त औक्तिकमां आवेला विभक्तिविचारना प्रकरणमा साते विभक्तिओनो परिचय आ प्रमाणे आपेलो छे :
१ - चन्द्र ऊगइ. वीतराग वांछित दिइ. जु. सु. कउण ऊगइ ?
कुलमंडनना नामविभक्तिना प्रयोगो
३१७ कुलमंडने पोताना मुग्धावबोध - औक्तिकमां आरंभमां पोताना प्रगुरु चंद्रशेखरने संभार्या छे अने अंतमां पोताना दीक्षागुरु देवसुंदरने याद कर्या छे. ते श्लोको आ प्रमाणे छे :
“श्रीचन्द्रशेखर गुरून् वन्दे यैरुक्तियुक्तिभिः । मादृशस्यापि बालस्य चक्षुरुदघाटितं हृदः
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- ( आरंभ )
'लक्षणाप्तवचनाम्बुधिबिन्दु बिन्दु - बाण-कृत- भू-मित १४५० वर्षे । औक्तिकं व्यधित मुग्धकृते श्रीदेवसुन्दरगुरुक्रमरेणुः ॥
( अंत )
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