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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति ।
स्पष्टपणे जणावेलो छ : (“ श्रीमद्-देवेन्द्रशिष्यः शर-रस-युग-भू-वत्सरे वृत्तिमेताम् । लक्ष्मीचन्द्रः चकार अखिलगुणनिधयः सूरयः सो (शो) धयन्तु "-पृ० ९०) अर्थात् “देवेन्द्रना शिष्य लक्ष्मीचन्द्रे १४५६ ना विक्रम वर्षमां आ वृत्ति बनावी छे. मूळ रास बन्या पछी आ टिप्पन, पचास वर्ष पछी बन्युं होय एवी संभावना करीए तो रासकारनो समय मोडामां मोडो चौदमा शतकनो प्रांतभाग वा पन्दरमा शतकनो प्रारंभ कल्पी शकाय अने बीजुं कोई बाधक वा साधक प्रमाण न मळे त्यांसुधी प्रस्तुतमां रासकारना समय विशे करेली अटकळ असंगत जणाती नथी. अथवा एम पण बनवाजोग छे के रासकार अने टिप्पनकार, ए बन्ने समसमयी पण होय.
भाषा-संदेशकरासनी भाषा, चौदमा अने पंदरमा सैकानी अहीं आपेली बीजी कृतिओनी भाषा जेवी ज विशुद्ध अने सरळ ऊगती गुजराती छे. तेमां केटलांक एवां विलक्षण उच्चारणो छे जेने लीधे ज ते, नवा वांचनारने अपरिचित जेवी लागे एवी छे. व्याकरणनी दृष्टीए पण रासनी भाषा अने चौदमा-पंदरमा सैकानी कृतिओनी भाषा-ए बे बच्चे खास अंतर जणातुं नथी, फक्त रासनी भाषा खास लौकिक अने प्रांतिक होई तेमां व्याकरण- तंत्र विशेष ढीलु जणाय छे अने ए ढीलाश ज रासना केटलाक प्रयोगोमां प्रतिबिम्बी रही छे. रासकारे, आ पोतानी कृतिमां केटलाक शब्दो पोताना प्रांतना वापरेला छे, जेमने टिप्पनकारे तथा वृत्तिकारे “देश्य ' तरीके जणावेला छे. तेमांना कोई कोई शब्द फारसी जेवा पण जणाय छे. रासकारे वापरेला विलक्षणध्वनिवाळामांनां अने प्रांतिक शब्दोमांनां केटलांक, उदाहरणरूपे आ नीचे आपुं छु : प्रचलित उच्चारण :
रासकार- उच्चारण : '()' आ निशानमा मूकेला शब्दो अर्थसूचक छे धाम
पृ० ७७ हाम-(तेज) पल्लंक
पृ० ७६ पल्लंघ-(पलंग)
पृ० ३८ साइअ-(सांइ-स्वामी ) धूमिण
पृ० ७८ धूइण-(धूमाडा वडे) धूविज्जइ
पृ० ७७ धूइज्जइ-(धूपाय छे) पउत्त ।
पृ० ८८ पउक्क-(प्रयुक्त) पजुत
सामी
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