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गुजराती भाषानी उत्कान्ति
१४७ चौदमी सदीना उक्त शब्दोनो परिचय आप्या पछी चौदमी सदीना ' संग्रामसिंह ' नामना एक विद्वाने बनावेला ' बालशिक्षा' नामना ग्रंथ विशे थोडुं जणाववुं प्रस्तुत छे. संग्रामसिंह जाते श्रीमालवंशनो छे. तेमना पितानुं नाम ठक्कर कूरसी अने पितामहनुं नाम साढाक ग्रंथनी प्रशस्तिमां रच्या साल १३३६ जणावेली छे एटले संग्रामसिंहनो चौदमो सैको अफर छे. ए ग्रंथकारे पोताना समयना संस्कृत भणनाराओ माटे ए ग्रंथ लख्यो छे, तेमां साथे साथे ग्रंथनी समझुती माटे ते समयनी भाषा पण वापरी छे. अने संस्कृत प्रयोगोने समझाववा तुलनात्मक रीते तत्कालीन शब्दप्रयोगोने योजेला छे एटले ते ग्रंथमांना केटलाक प्रयोगो चौदमी सदीनी भाषा विशे विशेष स्पष्ट प्रकाश नाखे एवा छे माटे ज हवे ते ग्रंथना प्रयोगोनो विचार करीश.
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चौदमा शतक ना संग्रामसिंहनी बालशिक्षाना केटलाक प्रयोगो
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वर्तमानकाळ- कर्तरिप्रयोगने समझाववा ग्रंथकार, नीचेनां उदाहरणो आपे छे-करई, लियई, दियई. चालु भाषा - करे छे, ले छे, दे छे.
कर्मणि प्रयोग
कीजई (कराय छे ), दीजई (देवाय छे ), लीजई (लेवाय छे ). कर्मणिप्रयोगने ग्रंथकार वक्रोक्ति कहे छे. ( पृ० २६६ )
विध्यर्थ - करिजे ( करजे ), लेजे, देजे.
आज्ञार्थ - करि (कर्य -कर), लई (ले), दई (दे ).
३१५ “ सतां प्रसादः स हि यद् मयाऽपि श्रीमालवंश्येन कृतिः कृतेयम् । साढाकभूठक्कर कूरसिंहपुत्रेण षट् - त्रि - त्रियुतैकवर्षे " ॥
- ( पुरातत्त्व पु० ३, अंक १, पृ० ४१ )
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