________________
आर्छ
४२०
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति 'मडप्फर' शब्द देश्य छे. तेनो अर्थ छे: अभिमान. ( देशी०व०६ गा० १२० ) · मडप्फर' लोकभाषानो शब्द छे एम हेमचंद्र कहे छे. (८-२-१७४) 'अच्छ' ऊपरथी 'आछ' एटले निर्मळ-अतिआछउ-अतिनिर्मळ.
__ भाषामां बहु बारीक कपडा माटे 'आर्छ' शब्द
वपराय छे. संभव छ के ए ‘आर्छ' शब्द पण पूर्वोक्त निर्मळ अर्थवाळा ‘अच्छ' ऊपरथी आव्यो होय अने ए पक्षे लक्षणाद्वारा अर्थसंगति घटमान छे. अथवा 'आ' साथेना ‘छाद' अर्थात् ('आच्छाद'-ढांक_) 'आच्छाद' धातु साथे वस्त्रवाची 'आर्छ' शब्दनो संबंध होय. अन्यथा बारीक कपडा माटेना ‘आछा' शब्दनी व्युत्पत्ति शोधनीय रही.
सं० परिदधाति-प्रा० परिधाति-परिहाइ-पहिरेइ-ए रीते 'पहिरेइ'नी निष्पत्ति छे. 'परिधान' ऊपरथी ‘परिहाण' अने व्यत्यय थतां पहिराणपहिरण-ए रीते ‘पहिरण' शब्द आवे, तेनु सप्तमीमां-पहिरणि. . संथउ-सीमन्तकः ऊपरथी सीमंतओ-सीअंतउ-सीतउ-संथउसिथउ सेंथो. 'बोरीयावडि'--एक प्रकारना वस्त्रनी जात छे. सं० 'बदर' नुं बोर'
ए प्रा० उच्चारण छे. अने ‘वडि' नुं मूळ 'पट' बोरीयावडि
शब्दमां छे. आ जोतां जे कपडामां ‘बोर' नी भात होय वा जे कपडामां सोनेरी कसबबाळां बोर–बोरियां टांकेलां होय ते कपड़े 'बोरियावडि' कहेवाय. प्रस्तुतमां 'बोरियावडि' शब्द ‘कांचळी' माटे वपरायेलं विशेषण छ: बदरिकापटी-बोरियावडी. 'बदर' ना · बोर' माटे जुओ (८-१-१७०). हंसनी भातवाळु वस्त्र 'हंसवडि' अने गज-हाथी-नी भातवाळु वस्त्र 'गजवडि' ने नामे ख्यात छे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org