________________
४०६
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
‘वजरिय' पद ‘वजर्' धातु ऊपरथी आव्युं छे. 'कथ्' धातुना 'वजर' नी चर्चा
, पर्याय रूपे 'वजर्' ने ८-४-२ मां सूचवेलो
" छेः उच्चरित-उच्चरिअ-बुच्चरिअ के प्रोच्चरित-पुच्चरिअ -वुच्चरिअ-बजरिअ-ए रीते संभव छे के वुच्चरिअ-वजरिअ-द्वारा 'वजर्' धातु अने पुच्चरिअ-पजरिअ द्वारा ‘पजर' धातु नीपज्यो होय. अन्यथा 'वजर् ' अने ‘पज्जर' ए बन्ने धातुओ देश्य छे, एम मानवू जोईए. 'सरवणि' शब्दनुं मूळ 'सु' धातुमां छे. 'कुण्डिकातो जलं स्रवति'सरवणि'
, कुंडीमांथी पाणी स्रवे छे–टपके छे-झरे छे.'
ए प्रयोगमा जे अर्थ 'सु' धातुनो छे, ते ज अर्थ 'सरवणि' मां वपरायेला 'सु' धातुनो छे. 'सु' ऊपरथी आवेलो 'प्रस्रवण' शब्द संस्कृतमां प्रसिद्ध छे. स्रवण' ऊपरथी · सरवण' शब्दने लाववानो छे. 'श्रावणनां सरवडा' प्रयोगमा जे भाव ' सरवडा' पदनो छे, ते ज भाव अहीं — सरवणि' नो छे. 'झिज्जइ' एटले 'क्षीण थाय छे.' प्राकृतमा केटलेक स्थळे 'क्ष' . नुं 'झ' उच्चारण थाय छे. (८-२-३) एम
हेमचंद्र कहे छे अने 'झिज्जइ' 'झीणं' एवां उदाहरणो आपे छे. ए ऊपरथी एम कही शकाय एम छे के 'क्षीयते' अने आ — झिजइ' बन्ने एकसरखां क्रियापदो छे.
' झबक्कइ' के ' झबकइ ' ए वीजळीना झबकाराना अनुकरण ऊपरथी आवेलु क्रियापद छे. ए ज रीते ‘खलभल' 'झलहल' 'थरहर' 'रिमिझिमि'
'झिरिमिरि' वगैरे ए बधां पदो अनुकरण ऊपरथी झबक्क वगेरे - आवेलां छे. क्षोभ सूचववा खलभल, आंखमांथी
र अनुकरणों
चमकारावाळु पाणी पडतुं जणाववा के तेजनी चमक सूचववा झलहल, कंपनने दर्शाववा थरहर--थरथर, घूघरानो अवाज
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org