SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख १७ ८ गमे ते वर्णनुं उच्चारण करती वखते कोईनुं वलण वधारे पडतुं विवृत होय छे वा संवृत होय छे, घोष होय छे वा अघोष होय उच्चारण करना- छे, कोईनुं वलण वधारे पडतुं नासिक्य रहे छे, एवो ओनी विविध पण संभव छे के दन्त्य अक्षरो ज न बोली शकाय परिस्थिति अने एटले तवर्गने बदले टवर्ग ज बोलाई जाय वा दन्त्य उच्चारणो ऊपर पनी विधविध 'ल' ने बदले 'र' ज नीकळी जाय, मूर्धन्य 'ण' ने बदले 'न' ज आवी जाय, बोलतां बोलतां C असर एकने बदले बीजो पण सवर्ण वर्ण ज खरी पडे, केटलीक वार वर्णोनो विपर्यास पण थई जाय, वधारे पडतुं दीर्घ उच्चारण के वधारे पडतुं ह्रस्व उच्चारण थई जाय, उदात्त अनुदात्त अने स्वरितना मेदनुं अज्ञान होई वधारे पडतुं तीव्र के मंद उच्चारण थई जाय, 'श' 'ष' 'स' के 'च' नो भेद जतो रहे, 'ऋ' नां विविध उच्चारणो प्रवर्ते, 'ऐ' के ' अइ' ना भेदनो तेम ज 'औ' के ' अउ' ना भेदनो ख्याल भूसाई जाय, बे स्वरो अव्यवहित रीते साथै आवतां तेमनुं उच्चारण १८ पाणिनि वगेरे वैयाकरणोए पोताना व्याकरणमां खास एक स्वरसंधिनुं प्रकरण राख्युं छे तेज, आ बाबतनुं प्रबळ उदाहरण छे : दण्ड + अग्रम् - दण्डाग्रम् । तव + एषा - तवैषा । देव + इन्द्र: - देवेन्द्रः । अ + ऊढः = प्रौढः । प्र + ऋणम् - प्रार्णम् । इह + एव - इहेव । बिम्बोष्ठी, प्र + एलयति - प्रेलयति । बिम्बोष्ठी बिम्ब ओष्ठी - { + दधि + अत्र - 1 दध्यत्र, दधियत्र ने + अनम् - नयनम् । लो + अनम् - लवनम् । ते + अत्र तेऽत्र 1 दधि, दधि दधि Jain Education International नदी + एषा -- { ननयेषा नायकः । नै + अक: 'लौ + अक: - लावकः । गो + अक्षः - गवाक्षः । मधु-मधु, मधु वगेरे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy