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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
खुद्द उत्तइ मंत--तंत-जंताइ विसुतइ चरथिरगरल—गहु—ग्गखग्गरिउवग्ग विगंजइ । दुत्थियसत्य अणत्थतत्थ नित्थारइ दय करि दुरियइ हरउ स पासदेउ दुरियक्करिकेसरि ॥ ५ ॥ तुह आणा थंभेइ भीमदपुर सुरवर रक्खस–जक्ख–फर्णिदविंद चोरा-इनल - जलहर ! जल - थरचारि रउद्दखुद्द पसु - जोइणि- जोइय इय तिहुअणअविलंघिआण जय पास ! सुसामिय ! ॥ ६ ॥ पत्थियअत्थ अणत्थतत्थ भत्क्तिम्भरनिब्भर
रोमंचचिय चारुकाय किन्नर -नर-सुरवर | जसु सेवहि कमकमलजुयल पक्खालियकलिमलु सो भुवणत्तयामि पास मह मद्दउ रिउबलु ॥ ७ ॥ बहुविहुवन्नु अन्नु सुन्नु वन्निउ छप्पन्निहिं । मुक्ख-धम्म - कामत्थकाम नर नियनियसत्थिहिं । जं झायहि बहुदरिसणत्थ बहुनामपसिद्धउ सो जोइयमणकमलभसल सुहु पास पवद्धउ ॥ ८ ॥
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मह मणु तरलु पमाणु नेय वाया विविसंठुलु न य तणुरवि अविणयसहावु आलसविहलंघलु । तुह माहप्पु पमाणु देव ! कारुणपवित्तउ
इ इ मा अवहीर पास ! पालिहि विलवंतउ ॥ १८ ॥
किं किं कप्पिउ न य कलुणु किं किं व न जंपिउ किं व न चिट्टिउ कि देव ! दीणयमवलंबिउ |
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