________________
( १ )
अभयदेवसूरि- बारमो सैको थंभणयपास - स्तोत्र
( पंचप्रतिक्रमण पं० सुखलालजीसंपादित १९२१ ) जय तिहुअणवरकप्परुक्ख ! जय जिण ! धन्नंतरि ! जय तिहुअणकल्लाणकोस ! दुरिअक्करिकेसरि ! तिहुअणजणअविलंघिआण ! भुवणत्तयसामिअ ! | कुणसु सुहाइ ! जिणेस ! पास ! थंभणपुरट्टिअ ॥ १ ॥
तइ समरंत लहंति झत्ति वरपुत्त - कलत्तइ धष्ण-सुवण - हिरणपुण्ण जण भुंजइ रज्जइ ।
पिक्as मुक्ख असंखसुक्ख तुह पास ! पसाइण इअ तिहुअणवरकप्परुक्ख सुक्खा कुण मह जिण ! ॥ २ ॥
जरजज्जर परिजुण्णकण्ण नहुट्ठ सुकुट्ठिण चक्खक्खीण खरण खुण्ण नर सल्लिय सूलिण ।
तुह जिण ! सरणरसायणेण लहु हुँति पु-णव जय धन्नंतरि ! पास ! मह वि तुह रोगहरो भव ॥ ३ ॥
विज्जा - जोइस - मंत-तंतसिद्धि अपयत्तिण भुवण अट्टविह सिद्धि सिज्झहि तुह नामिण । तुह नामिण अपवित्तओ वि जण होइ पवित्तर तं तिहुअणकलाणकोस तुह पास ! निरुत्तउ ॥ ४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org