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बारमो अने तेरमो सैको
३३५ अर्थमां वपरायेलो छे. ज्यां ते शब्द वपरायो छे ते पद्यो आ प्रमाणे छ :
" दायव्वमस्थि अन्नं पि किं पि सो भणइ तुम्ह जं एत्थ ।
तस्स य सट्टे खग्गं गिन्हह एवं ति सो भणिउं ॥” (गा० ५८) अर्थात् “ते कहे छे के तमोने जे बीजुं कांइ देवानुं छे तेने साटे-तेना साटामां-बदलामां-मारुं आ खड्ग ल्यो." ‘सट्टी'नो निर्देश : " आगच्छामि सदेसं विकिणिउं किं पि किं पि किणिऊणं ।
घडिय च्चिय मह सट्टी इह वणिएहिं समं जेण" ॥ (गा० १४) अर्थात्-" कांइ कांइ वेचीने अने खरीदीने स्वदेश तरफ आq छु, कारण के अहीं वाणियाओ साथे मारु साटुं थयेलुं ज छे."
आ रीते प्रथम पद्यमांनो 'सट्ट' शब्द 'साटे' ना भावने जणावे छे अने बीजा पद्यनो 'सट्टी' शब्द 'साटुं–सोदो' अर्थने सूचवे छे. ___ अहीं वपरायेला ' सट्ट' अने ' सट्टी' ए बन्ने शब्दो देश्य जणाय छे, अने ते एक ज शब्दनां रूपांतर जेवां भासे छे.
प्रस्तुत कृतिमां वपरायेलो ‘साठि' शब्द अने उक्त 'सट्टी' शब्द समान छे.
भाषामां ‘तेलने साटे घऊ दे' एवा वाक्यमा जे अर्थमां — साटे' शब्द चपरायो छे ते अर्थमां अथवा 'साटा'ना अर्थमां आ 'साठि' शब्द अहीं वपरायो छे, 'तैलस्यार्थे गोधूमं देहि' वाक्यना 'तैलस्यार्थे' पदनुं प्राकृत उच्चारण ‘तेलस्सट्टे' थाय, तेनुं जगती गुजरातीमां तेलस्सहि' थाय. 'तेलस्सठि' पदमां ‘तेल' प्रकृति छे. अने ‘स्सहि 'मांनो ‘स्स' षष्ठीनो छे, तथा ' अहि' पद प्रयोजनवाचक 'अर्थ' ऊपरथी आवेलुं सप्तमी विभक्तिवार्छ रूप छे.' प्रयोजन' अर्थवाळा 'अर्थ', 'अह' उच्चारण थाय छे अने 'धन' अर्थवाळा 'अर्थ'- ' अत्थ' उच्चारण थाय छे ए ध्यानमा रहे. “ अट्ठो
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