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बारमो अने तेरमो सैको
३०५ ११९ हेमचंद्र ‘ले छे' अर्थमां 'लेइ' क्रियापद वापरे छे. उक्त
__ लेइ 'नी निष्पत्ति माटे केटलाक विद्वानो 'नी'
" धातुने अने केटलाक ‘लभ-लह' धातुने कल्पे छे. मारा विचार मुजब बीजा गणना ‘ग्रहण' अर्थवाळा 'ला' धातुमाथी आ ' लेइ' लावq वधु सुगम छे. जेम ‘दा' नुं — देइ' अने ‘धा' नुं 'धेइ' रूप नीपजे छे तेम शब्दविषयक के अर्थविषयक कशी क्लिष्ट कल्पना कर्या विना 'ला' ऊपरथी 'लेइ' आवी जाय छे. क्रियारत्नसमुच्चयमां गुणरत्नसूरिए ‘लिअइ' क्रियानो प्रतिशब्द 'लाति' आप्यो छे. 'लीजइ' क्रियानो प्रतिशब्द 'लायते' जणाव्यो छे, अने ‘लइ' ('ले') नी छाया ' लातु' मूकी छे.
अत्यार सुधीमां में मात्र बारमा सैकानी त्रणे कृतिओमा आवतां नामो, क्रियापदो, विभक्तिओ, अव्ययो, विशेषणो वगैरे विशे विचार कर्यो अने ते संबंधे व्युत्पत्ति विषयक विवेचन पण कर्यु. ___ हवे पछीना सैकाओनी कृतिओना उतारामां जे नामो वगैरे आवशे ते बाबत विशेष लखवानुं न रहे ए उद्देशथी अहीं में आटलं लांबु लखी नाख्युं छे.
हेमचंद्रे जे ऊगती गुजरातीनुं व्याकरण लख्युं छे तेना नियमो साथे उक्त त्रणे कृतिओना प्रयोगोने सरखावतां साधारण उच्चारणभेद सिवाय बीजो एवो खास कोई विशेष भेद जणायो नथी. अने साधारण पण जे भेद जणायो छे ते, ते ते स्थळे आगळ कहेवाई गयो छे.
१२० हवे तेरमा अने त्यार पछी अनुक्रमे अढारमा सैकासुधीना प्रयोगोनी व्याकरण अने व्युत्पत्तिनी दृष्टिए मीमांसा करं ए प्रसंग प्राप्त छे.
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