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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति 'पहोंचq' क्रियापदनी व्युत्पत्ति विचारवा जेवी छे. स्व० श्रीमान
नरसिंहराव भाई ‘प्राप्त' कृदन्त ऊपरथी निष्पन्न 'पहोंचबुं'नी
थता प्रा० ‘पत्त' पदमा 'पहोंचवू' क्रियापदना व्युत्पत्तिचर्चा
मूळने शोधे छे. 'प्राप्त' अने 'पहोंचवू' ना अर्थमां विशेष भेद नथी. 'प्राप्त' शब्द थी सूचवातुं ‘प्रापण' विशेष व्यापक छे, त्यारे ‘पहोंचवू' द्वारा सूचवाती 'प्राप्ति' 'प्रापण' करतां संकुचित छे. 'सुख पाम्यो', 'दुःख पाम्यो', 'लाभ पाम्यो', 'बायडी पाम्यो' ‘भायडो पामी' वगेरे वाक्योमा ‘पाम्यो' नो जे भाव छे ते, 'नदीए पहोंच्यो', 'घाटे पहोंच्यो', 'गाम पहोंच्यो' 'माणस पहोंच्यो' वगैरे वाक्यमां वपरायेला 'पहोंच्यो' ना भाव करतां सहेज जुदो पडे छे. तात्पर्य ए के 'सुख पाम्यो', 'भायडो पामी' वगेरे वाक्यमां जे कर्ता छे ते गतिशील ज होय छे एवो नियम नथी त्यारे 'गाम पहोंच्यो' वगैरे वाक्यमां कर्ता गतिशील होवो ज जोईए, ए जातनो भेद ‘प्राप्त' अने 'पहोंच्यो' मां स्पष्टपणे जोई शकाय छे. संस्कृत अने प्राकृतोमां तो सुखं प्राप्त:सुहं पत्तो, नदी प्राप्त:- नई पत्तो, ग्रामं प्राप्तः——गामं पत्तो, वगैरे प्रयोगोमां एक सरखी रीते ‘पत्त' शब्दनो उपयोग थयेलो छे. ए जोतां 'प्राप्त' ना 'पत्त' द्वारा आवता 'पहुच्च' मां अर्थनी विषमता नथी. परंतु ‘पत्त' मां 'ह' अने 'उ' आव्या सिवाय ‘पहुच्च' बनी ज न शके एथी पहुच्च' रूपनी निष्पत्ति माटे ‘पत्त' मा 'इ' अने 'उ' ने प्रक्षिप्त मानवा पडे छे. ___ आ संबंधे श्रीमान् दिवेटीया साहेब पोताना व्याख्यानमां जणावे छे के [""पत्तउं' मां आगन्तुक 'उ' समेत 'इ' प्रविष्ट थाय छे एटले 'पहुत्तउं' बने छ, आम थवानुं कारण अविदित छे पण उच्चारणनी अनुकूळता ज कारण हशे एम जणाय छे" पृ० २४४.]-आ रीते अहीं
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