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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
भ्रामक छे. एटले जे व्युत्पाद्यरूप माटे अर्थसाम्य के अक्षरसाम्य बने साथै सचवाई शके एवी व्युत्पत्ति न करी शकाती होय त्यां गमे ते कल्पना करवा जतां साची व्युत्पत्तिने बदले व्युत्पत्त्याभासने समर्थन आपवा जेवुं थाय छे. बळी, प्रसंग छे तेथी कहुं हुं :
व्युत्पत्ति माटे केवल अक्षर
साम्य भ्रामक छे
' जूनी गुजराती भाषा' नामना पुस्तकमां तेना साक्षर लेखके पृ० १७५ ऊपर 'पहेलवहेलुं' नी व्युत्पत्तिसंबंधे विचार कर्यो छे. तेमां तेमणे एम जणान्युं छे के [ " " व्हेल व्हेलुं'. प्रथम 'प' नो लोप थतां बनतुं ' हलविहल' रूप जूनी गुजरातीमां वपरायुं छे. एटलां वांनां 'हल्लविहल्लु' बेटा हई आपिओ ( संदर्भ ८४ -२ ) तेम ज ' उवएसमालकहाणय छप्पय ' मां 'हल्लविहल' रूप वपरायुं छे " - पृ० १७५] तेमनुं आ लखाण मात्र अक्षरसाम्य ऊपर अवलंबतुं होई भ्रांतिमूलक छे. एमणे जे 'संदर्भ' अने 'उवएसमाल कहाणय' नो आधार टांक्यो छे तेमां ' हलविहल' शब्दनो अर्थ ज ' पहेलवहेलुं ' नथी. राजा कोणिकना बे भाई नामे ' हल ' अने ' विहल ' छे ए जैनकथामां सुप्रतीत छे. एटलां वांनां हल्लुविहल्ल बेटा हूई आपिओ' ए वाक्यनो खरो अर्थ आ प्रमाणे छे : एटलां वानां - - एटली चीजो. हल विहल बेटा हूई - हल्ल विहल बेटाने - हल्ल, विहल नामना बेटाने - पुत्रोने आपिआ-आप्यां.
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ते बाबतनां उदाहरणो
तेम ज ' उवएसमालकहाणय ' ( गाथा ५२ ) मां " हल्ल विहलहं हार गुरु गयवर सिउ दिउ " हल विहलहं- एटले हल अने विहल्लने, गुरुयमोटा, गयवर - हाथी, सिउ साथै, हार-हार, दिउ - दीधो.
आ ते वाक्य के शब्दनो वास्तविक अर्थ समझ्या विना मात्र अक्षर - साम्यने वळवाथी व्युत्पत्तिना क्षेत्रमां घणा भ्रमो नीपजे छे.
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