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बारमो अने तेरमो सैको
२४१ 'अस् 'नो 'ओ' होय. एकवचननो 'ओ' लईए तो तेने बहुवचनमां फेरववो पडशे अने उक्त बहुवचनना 'अस्'नो 'ओ' लईए तो ते सीधो ज लागी शकशे. एथी ‘माणसो' वगेरे रूपोमां उक्त ‘अस् 'नो 'ओ' लगाङवाने बांधो नथी. 'छोकराओ' वगेरेमां पण ते ज 'ओ' लेवो; पण तेवां रूपोमां बेवडो प्रत्यय लागेलो छे. 'छोकराओ' वगेरे रूपोना अंतिम ‘आ-ओ' प्रत्ययनी अहीं चर्चा करी तो छे परंतु चालु भाषामां एवां रूपोनो व्यवहार वधारे जणातो नथी ए ध्यानमा राख.
बीजी विभक्तिमां दीणयं' जेवू शुद्ध प्राकृत रूप वपरायेलं छे पण आवां रूपो अतिविरल छे. दय, संख वगेरे रूपो बीजी विभक्तिनां छे. अहीं विभक्ति लोपायेली छे, एटलं ज नहीं किन्तु मूळ अंग — दया' 'संख्या'नो अंत्य 'आ' पण 'अ'मां फेरवायेलो छे. अपभ्रंशमां सविभक्तिक नामना अंत्य स्वरनो हस्व उच्चार पण थाय छे. (जुओ पृ० २०५, १५) ए धोरणे ' दया' अने 'संखा', 'दय' अने 'संख' थयेलुं छे. घणे स्थळे नारीजातिना नामनी प्रथमा विभक्तिमां पण ' दय' अने ‘संख' जेवां रूपो वपरायेलां छे अने 'उ' प्रत्ययवाळां रूपो पण आवे छे.
अभयदेव-निष्फल्ल, जुग्गय, पत्थण, महारिय, जत्त. वादिदेवमूरि-संख, संख. हेमचंद्र-बोड्डिअ, एह, स, मुइअ, गइअ, धण. अभयदेव-विसंठुलु, अब्भुअउ. साधारण रीते जोतां 'आ', 'ई', अने 'ऊ' ए त्रण प्रत्ययो नारीजातिना सूचक छे. अजा, प्रजा, दया, संख्या वगैरेमां 'आ' प्रत्यय छे. नारी, नदी, शची वगैरेमां 'ई' प्रत्यय छे अने वधू, करभोरू वगरेमां 'अ' प्रत्यय छे. ऊगती गुजरातीमां 'ई' अने 'ऊ' प्रत्ययो धणे भागे सचवायेला छे त्यारे स्त्रीत्वसूचक 'ई' अने 'ऊ' प्रत्ययनी
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