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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति अने 'गावडां' मां जे 'आं' लागेलो छे तेनुं मूळ पण ते 'आ' होय अथवा व्या० प्रा० ना ' आनि' ऊपरथी नीपजेलो ते 'आं' होय. __ चालु गुजरातीमां पूर्वोक्त 'चंदु' जेवू 'उ' प्रत्ययवाळू रूप नथी देखातुं पण फक्त नान्यतरजातिमां 'भग्गउं' नी पेठे 'केळु' वगेरे 'उ' प्रत्ययवाळां रूपो प्रचलित छे.
'ओ' प्रत्ययवाळां रूपो ‘घोडो, छोकरो, लाडवो' वगैरे व्यवहारमा छे अने बहुवचनमां नरजातिमां 'आ' 'आओ,' तथा 'ओ' प्रत्ययनी अने नान्यतरजातिमां 'आं' प्रत्ययनी वपराश छे. आ उपरांत पहेली बन्ने विभक्तिमां मूळ अंग पण वपराय छे. ___ 'छोकरो, घोडो' वगैरेमा जे 'ओ' प्रत्यय छे तेना मूळमां वैदिक 'सो चित्' वाळो 'ओ' छे. अने घोटक :-घोडओ-घोडउ-घोडो ए रीते तेनो क्रमपरिवर्त छे. छोकरा, घोडा वगैरेमा जे 'आ' प्रत्यय छे ते वैदिक 'देवाः' 'जनाः' प्रयोगना 'आः' प्रत्ययनुं रूपांतर छे. 'माणसो' 'देवो' वगैरेमा छे तो पूर्वोक्त 'ओ' प्रत्यय परंतु ते बहुवचनमां फेरवायो छे अने 'छोकराओ' वगैरे प्रयोगोमांना 'आओ' नुं मूळ, उक्त ' आः' अने 'ओ' ए बन्ने प्रत्ययना मिश्रणमां छे अर्थात् ‘छोकराओ' वगेरेमां 'आ' अने 'ओ' एम बेवडो प्रत्यय लागेलो छे. अथवा वैयाकरण पाणिनिए वैदिक अने लौकिक उभय प्रकारना नामोने लगता प्रत्ययोने जणावतां प्रथमाना बहुवचनमा ‘अस्' प्रत्यय जणावेलो छे. जे 'सखायः ‘वाचः' वगैरे रूपोमां मूळरूपे जळवाई रह्यो छे. संभव छ के ते 'अस्,' 'ओ' रूपे परिणाम पामी 'माणसो' वगैरेमां लाग्यो होय. अहीं वधु संगत ए छे के — माणसो' वगैरेमांनो बहुत्वसूचक 'ओ' प्रत्यय पूर्वोक्त एकवचननो 'ओ' न होय किन्तु ते आ 'वाचः'ना
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