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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति (१६) व्यंजनादि प्रत्ययो लागतां नामनो अंतिम स्वर विकल्पे दीर्घ थाय छः देवसु, देवासु
(१७) ८-४-३३५ त्रीजीना बहुवचननो प्रत्यय लागतां नामना अंतिम 'अ' नो विकल्पे 'ए' थाय छे : देवहिं देवाहिं, देवेहि (१८) ८-४-३४५ केटलाक प्रयोगोमां षष्ठी विभक्तिमां मूळ लुप्तविभक्ति नाम ज वपराय छे, जेमके; गय (गज-गजानाम् ) (१९) ८-४-४२२ संबंध बताववा माटे गमे ते पदनी पछी संबंधसूचक तण' अने 'केर' शब्दो पण वपराय छ :
प्रत्ययो जसु-केरउं (जस-केरं-जेनुं) अम्हह-तणा ( अमतणा–अमारा)
(२०) ८-४-४२५ ते माटे' एवो अर्थ बताववा सारु गमे ते पदनी पछी · केहिं', 'तेहिं ', 'रेसि', 'रेसिं', अने 'तणेण' ए पांचमांनो गमे ते एक शब्द मूकाय छे :
तउ केहिं—(तारा माटे) अन्नहि रेसि-( अन्यने माटे)
वडत्तणहो तणेण—( वडाईने माटे) सर्वादिशब्द (२१) सर्वादि शब्द. ८-४-३६६ साह । (सर्व) व० उ० सव्व
सहु, सौ ८-४-३६५ औय (इदम् ) आ, आय २३० भाषाना सब (हिन्दी ) अने सउ के साउ ( गुजराती ) शब्दनी साथे प्रस्तुत 'सव्व' अने 'साह'नी सरखामणी सुघटमान छे.
२३१ भाषानो 'आ' अने पारसीलोकमां बोलातो 'आय' ए बन्ने शब्दनी साथे प्रस्तुत 'आय' नुं विशेषतः साम्य छे.
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