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१८८ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
बारमा सैकानी आ भाषा ऊगती गुजराती नथी एम कोण कही शकशे ? ७६ आचार्य हेमचंद्रे पोताना समयनी ऊगती गुजरातीने व्याकरण द्वारा
नियंत्रित करवा जे जे नियमो आप्या छे ते बधार्नु हमचद्रनु ऊगता अहीं सविस्तर आलेखन आवश्यक छे, कारण क
गुजरातीनुं व्याकरण ___अहीं ते नियमोनी तुलना द्वारा ज बारमा सैकाथी
अढारमा सैका सुधीनी गुजराती पद्य के गद्य एकी कतिपय कृतिओनी भाषानुं अवलोकन करवानुं छे :स्वरपरिवर्तन (१) प्रायिक स्वरपरिवर्तन
. 'अ' नो आ-कच्च, काच्च ( काच ) (हेमचंद्रनां सूत्रोना , अंको)
'ई' नो ए-वीण, वेण (वीणा) ८-४-३२९
'उ' नो अ, आ-बाह बाहा, बाहु ( बाहु) 'ऋ' नो अ, इ, उ-तण, तिण, तृणं (तृण)
पट्ट, पिट्ठ, पुट्ठ (पृष्ठ)
सुकिद, सुकृद (सुकृत) [पालि, आर्षप्राकृत के अर्धमागधीमां 'ऋ' नो उपयोग समूळगो नथी त्यारे अपभ्रंशमां तेनो उपयोग प्रचलित थाय छे जो के ते पण विरल छे.]
१८९ वैदिकसंस्कृतमां अने पाणिनीय संस्कृतमा 'ऋ' स्वरनो प्रयोग छे त्यारे पालि, आर्षप्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने चूलिकापैशाचीमा 'ऋ' स्वरनो प्रयोग ज नथी. वळी पार्छ अपभ्रंशमां 'ऋ' नो प्रयोग चालु थाय छे. तृण, सुकृत वगेरे एनां उदाहरणो छे.
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