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________________ आमुख १७३ आ रीते जैनग्रंथोना समयमाननी अपेक्षाए साहित्यिक अपभ्रंश वि. ना पांचमा सैकाना उत्तरार्ध सुधी सहेजे लंबाय छे. हवे अहीं महायान परंपराना उक्त ललितविस्तर वगेरेना समय विशे थोडो विचार करी लईए. मोघम रीते एवं मानवामां आवे छे के, विक्रम पूर्व लगभग अँढीसो वर्षथी मांडीने विक्रम संवत चोथी शताब्दीना 'ललितविस्तर' - गाळामां ललितविस्तर वगैरे ग्रंथो लखाया होवा नजिकिन बोलो नो समय जोईए. ललितविस्तर पुराणनी रचनाने मोडामां मोडी चोथा सैकानी मानीए तो साहित्यिक अपभ्रंशनो समय ललितविस्तर यूर्वे एकाद सैको तो मानवो जोईए. कोई पण चालु भाषाने साहित्यिकरूपे आवतां ओछामां ओछो एकाद सैको तो लागी ज जाय ए तद्दन स्वाभाविक कल्पना छे. आ रीते जोतां एम थाय पालनु के बोलचालनुं अपभ्रंश पालि, आर्षप्राकृत के अपभ्रंश अर्धमागधीनुं निकटवर्ती छे अने बोलचालना अपभ्रंश पछी साहित्यिक अपभ्रंशनो आविर्भाव घटमान भासे छे. समयनी दृष्टिए साहित्यिक अपभ्रंशनो शैशवकाळ विक्रमनो पत्रीजो सैको, किशोरकाळ चोथो सैको अने पांचमा भ्रंशनो समय ' सैका पछीथी तेनो खिलतो यौवनकाळ मानी शकाय. 'अपभ्रंशप्रबंध' नो सूचक उक्त शिलालेख अने पांचमा-छटा सैकाना वसुदेवहिंडि ग्रंथमां आवतां अपभ्रंश पद्यो साहित्यिक अपभ्रंशनो जे समय सूचवे छे ते अने उक्त ललितविस्तरनां पद्यो द्वारा साहित्यिक अपभ्रंशनो जे विकासमान यौवनकाळ कल्पायो छे ते वच्चे विशेष अन्तर १७२ “ गाथाभाषा के समस्तग्रंथों का रचनाकाल ख्रिस्तपूर्व दोसों वर्षों से ले कर ख्रिस्त की तृतीयशताब्दी पर्यंतका है”–पाइअ० प्रस्ता० पृ. ४९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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