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________________ १७० गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति शयि, छोरयित्वा, धरणि, कम्पयमान, वसुध, ग्रहिय, मेरु, करेतलेभिः संस्थित, चतुरि, सागर, गृह्य, रतनयष्टि, भेरि, जगि, जन्मि, जगे, नद्य-व्रजतायु (व्रजति + आयु), जगे, यथ विद्यु, नभे ए अने एवा बीजा अनेक प्रयोगो अने लङ्कावतार सूत्रमा वपरायेला उक्त प्रयोगो अपभ्रंश सिवाय बीजी कई भाषाना संभवी शके एवा छे ? प्रथमाना 'एकवचनमां 'उ' प्रत्ययवाळं रूप, सप्तमीना एकवचनमां 'इ' प्रत्यवाळू रूप, लोपायेली विभक्तिवाळु रूप अने ए उपरांत वर्णपरिवर्तननी विलक्षणतावाळा भोति, इस्त्रि, ग्रहिय वगेरे विविध प्रयोगो कान ऊपर आवतां ज पोताना विशिष्ट प्रकारना अपभ्रंशभावने सूचित करे छे. ललितविस्तर वगैरेना निदर्शित प्रयोगोनुं पृथक्करण करी भाषाविज्ञानविद श्रीमान विधुशेखर शास्त्री कहे छे के जन्म जगे सं. प्रा० सं० प्रा० शय्यायाम् सेज्जाए | गृहीत्वा घेतूण छर्दयित्वा छडिऊण रत्नयष्टिम् रतनलटिं 'धरणिम् धरणिं भेरिम् भेरि कम्पयमानाः कम्पेमाणा जगति जगे वसुधाम् वसुहं जम्म गृहीत्वा घेतूण जगति मेरुम् नदी करतलैः करतलेहि यथा संस्थिताः संठिआ विद्युत् चतुर्-चतुरो चत्तारो नभसि -सागरान् सागरे __मूल ललितविस्तरमा वपरायेला ए पदो संस्कृत प्राकृत नथी पण कोई त्रीजी ज भाषानां छे ते बाबतनो ख्याल आवे माटे आ बधां पदोनुं संस्कृत अने प्राकृत रूपांतर अही करी बताव्युं छे. मेरुं FFE Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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