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________________ १४८ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति "लहशवशनमिलशुलशिलविअलिदमंदाललायिदंहियुगे। वीलयिणे पक्खालदु मम शयलमवय्ययबॉलं "!-हेमचंद्र ८-४-२८८. साधारण प्राकृत अने शौरसेनी करतां व्याकरणमागधीनी विशेषता उक्त गाथा ज बतावी आपे छे. उक्त बन्ने भाषा–साधारण प्राकृत अने शौरसेनीकरतां व्याकरणमागधीमां विजातीय संयुक्त व्यंजनो विशेष प्रमाणमा प्रवर्ते छे. एथी व्यंजनना घसारा विनानी आ भाषा सूत्रमागधी जेटली तो प्राचीन होय ज. आचारांग सूत्रमा ‘अकस्मात्' तथा अशोकनी धर्मलिपिओमां १३४ आ गाथार्नु संस्कृत आ प्रमाणे छ: रभसवशनमिर (नम्र ) सुरशिरोविगलितमन्दारराजित-अंहियुगः । वीरजिनः प्रक्षालयतु मम सकलम् अवद्यजम्बालम् ।। १३५ नीचेना अनेक प्रयोगो ऊपरथी जणाशे के व्याकरणमागधी अने अशोकनी धर्मलिपि ए बे वचे केटली बधी समानता छ : हैमव्या०-व्या० मा० अ. ध. ८-४-२९० कोस्ट (कोष्ठ) ३ अनुसस्टि (अनुशिष्टि) ६ उस्टान ( उत्थान ) ८-४-२९३ अञ (अन्य) ६ अञ ( अन्य ) ८-४-२८८ शालश (सारस) ६ दशि ( दर्शि ) ८-४-२८९ नास्ति (नास्ति) ६ नास्ति ( नास्ति ) अकस्मात् अकस्मात् * ( अकस्मात् ) ८-४-२८८ । ६ पुलुव ( पूर्व ) धर्मलिपिना शब्दो सामे जे अंको मूक्या छे ते धर्मलिपिना अंको समझवा. जेमके “६ नास्ति' एटले छठी धर्मलिपिमा 'नास्ति' प्रयोग छे. आवा बीजा पण व्याकरणमागधीने मळता प्रयोगो ते धर्मलिपिओमां अनेक छे. (जुओ 'अशोक की धर्मलिपियाँ' ओझाजीसंपादन) [* " इत्थ वि जाणह अकस्मात् "-आचार-अंग, अध्य० ७, उ. १ सूत्र १९६ पृ० २४१ आ० समिति०] ८-४-२७० है पुलव (पूर्व) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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