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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति करवानी रीते जाळवी राख्या तेवा मूळे अनार्यसंतानीय शब्दो पण ए देशी शब्दसमूहमां समझवाना छे.
अनार्यसंतानीय देश्यनो स्पष्टार्थ ए छे के, जे जे अनार्य जातिओ अहींनी हती, जे जे अनार्य जातिओ बहारथी आवीने अहीं वसी हती, तेवी बधी जातिओ साथे आर्योनो परस्पर भाषाव्यवहार हतो तेथी ते बधी जातिओना शब्दो आर्योनी भाषामां
अनार्यः
आर्यः
नेम ( अडधुं) अनार्यसंतानीय
जीनेदेश्यशब्दो
जयन-जयण (घोडानुं जीन)
चोर (भात)
माल - माला ( महिला-स्त्री) वगैरे अनेक शब्दोनी पेठे थोडा के वधु फेरफार साथे भेळवाई गया, एवो ते भेळाई गयेलो शब्दसमूह अनार्यसंतानीय देश्यनी कोटिनो समझवो.
चोर
__ जे अभ्यासिओ तुलनात्मक भाषाविज्ञाननी दृष्टिए गवेषणा करनारा होय अने साथे साथे द्रविडी वगेरे आदिम जातिओनी भाषाना पण जाणकार होय तेओ, संगृहीत देश्य शब्दोमांथी आदिम जातिओना शब्दोने तुरत
११३ नीम ( अडधुं) फारसी शब्द छे. ११४ 'जीन' माटे ११७ मुं टिप्पण जोवं.
११५-११६ आ बन्ने शब्दो माटे टिप्पण ३४ मुं तथा ३५ मुं जोई लेवं. वर्तमानमां मळयालंभाषामां 'भात' अर्थ माटे 'चोरु' शब्द वपराय छे एम एक मद्रासी मित्र पासेथी जाण्युं छे.
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