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१०२ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति संभव छे के 'प्राकृत भाषा नीच पात्रोनी भाषा छे' एवा रूढिगत
वहेमने लीधे आq बनवा पाम्यु होय. परंतु आ 'प्राकृत' नीच पात्रोनी भाषा की मान्यता तद्दन भूल भरेली छे. जे भाषा एक काळे
सर्वसाधारणमा प्रवर्तती हती एटले तेने राजा पण बोले अने रंक पण बोले, ब्राह्मण पण बोले अने चण्डाल पण बोले-एम होवाथी एवी सर्वव्यापक भाषाने नीच पात्रोनी भाषा कही उवेखवी क्यां सुधी उचित छे ? __ आर्यसंस्कृतिना असाधारण प्रतिनिधि भगवान महावीर अने भगवान बुद्धना मुखरूप हिमाचलमाथी जे भाषानी प्रशमरसपूर्ण गंगा वहेली छे, जे भाषाने कविवर हाल, वाक्पतिराज, रुद्रट अने राजशेखर जेवा विद्वानोए आदर आप्यो छे, जे भाषामां आर्यसंस्कृतिने लगतुं विपुल साहित्य उपलब्ध छे, जे भाषाना परिचय विना आर्यसंस्कृतिना इतिहासनो अभ्यास ज अटकी पडे एम छे अने जे भाषाना ज्ञान विना आपणा देशमां प्रवर्तती मराठी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, मारवाडी, मालवी, मेवाडी, कच्छी,
____ सिंधी, पंजाबी, भोजपुरी, मगही, आसामी, सिंहली, 'प्राकृत' भाषाना
" उडीया, बिहारी, काश्मीरी प्रमुखनो अरे ! तामिल, अभ्यास विना संशोधन कार्य जतेलगु, मलयाळं सुद्धांनो अने लेटिन, जर्मन, फारसी अशक्य छे तथा अंग्रेजी वगेरे भाषानो पण इतिहास जाणी शकाय एम नथी. ट्रॅकामां जे भाषाने अपनाव्या विना सर्वधर्मसमभावना जीवनहितकर सिद्धांतनुं आचरण ज शक्य नथी एवी प्राकृत भाषाने 'नीच पात्रोनी भाषा छे' वा 'अमुक संप्रदायनी भाषा छे' एम समझी तेना ज्ञान-विज्ञान अने संशोधनथी पोतानी जातने वंचित राखी आपणे राष्ट्रने
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