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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
स्नेहसंबंध होय छे तेवो संबंध ए बे भाषा वच्चे छे. वर्तमानमां तो नथी बोलाती प्राकृत तेम नथी बोलाती संस्कृत. परंतु बन्ने भाषानुं विपुल साहित्य उपलब्ध छे, ए ऊपरथी ए बे बहेनो जेवी भाषाओ वच्चेनो संबंध समझी शकाय एम छे. मोटी बहेन जेम नानी बहेनने पोतानां अलंकारो आपी शोभावे छे तेम प्राकृत भाषाए पोतानां मृदु आभूषणोथी नानी बहेन संस्कृतने मंडनयुक्त करी छे.
व्यापक प्राकृत अने लौकिक संस्कृत ए बन्ने बहेनो छे.
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५६ नीचे जणावेलां थोडां उदाहरणो द्वारा आ बाबत स्पष्ट थशे : [१] संस्कृत साहित्यमां 'साळा' अर्थमां 'स्याल' - अने 'स्याल' बन्ने शब्दोनो उपयोग छे. आ विशे विशेष गवेषणा करतां जणाय छे के 'स्याल " श्याल शब्द मूळरूप छे अने " शब्द तेनुं बीजुं उच्चारण छे. ऋग्वेदमां "अश्रवं हि भूरिदाववत्तरा वां विजामातुरुत वा घा स्यालात् ” [ ऋग्वेद पृ० ६६१ - सू० २] ए मंत्रमां 'स्याल' शब्दनो प्रयोग छे. निरुक्तमां पण उक्त मंत्रमां छे तेवा 'स्याल' शब्दनुं निर्वचन आप्युं छे.
नानी बहेन संस्कृत ऊपर मोटी बहेन
प्राकृतनी प्रबल असरनां उदाहरणो
'स्याल' अने 'श्याल'
५२ प्रस्तुतमां वपरायेलो 'प्राकृत' शब्द तेना 'अमुक प्रकारनी भाषा' एवा रूढार्थनो द्योतक छे. 'प्राकृत' नो व्युत्पत्त्यर्थं तो 'स्वाभाविक भाषा - प्रचलित लोकभाषा' एवो थाय छे परंतु ते अर्थ अहीं विवक्षित नथी. " 'प्राकृत वाणी वदुं " वाक्यमा प्राकृत शब्दनो रूढार्थ नथी परंतु व्युत्पत्त्यर्थ छे माटे ज ए वाक्यमां वपरायेलो 'प्राकृत' शब्द गुजराती भाषाने पण सूचवे छे.
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५३ 'स्याल' नुं निर्वचन आ प्रमाणे छे.
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'स्यात् लाजान् आवपति — इति वा " ' स्यम्' इति 'सूर्पम् ' उच्यते तस्माद् असौ गृहीत्वा कन्यकाया भगिन्या विवाहकाले लाजान् भृष्टधान्यान् आवपति
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