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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
योज्युं छे. परंतु 'प्राकृतनी माता लौकिक संस्कृत छे' एवं समझीने ' प्रकृतिः संस्कृतम्' एवं कहेलुं नथी.
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४७ अत्यारे कोई अंग्रेजने तुलनात्मक पद्धतिथी संस्कृत शिखववा माटे कोई शिक्षक एवी पद्धति योजे के :
अंग्रेजी.
श्री
बोय
केमल
ओक्स
इझू
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नाइन्
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संस्कृत.
त्रि
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पोत
क्रमेलक
उक्षन्
अस्
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नवन्
दशन्
तरु
गु० अ०
(त्रण) ( छोकरो )
( ऊंट )
(बळद )
( छे )
( होवुं )
( नव )
(दस)
( झाड )
तो आ पद्धतिनो अर्थ एवो नथी के संस्कृतनी प्रकृति अंग्रेजी भाषा छे, परंतु शीखनारने जे भाषा आवडे छे ते भाषाने वाहनरूपे राखीने जेम उक्त रीते अंग्रेजी मारफत संस्कृत शिखववुं सरळ पडे छे तेम भणेला लोकोमां ज्यारे संस्कृत भाषानो प्रभाव प्रबळ हतो, ते समये तेमने जे भाषा तरफ विशेष आकर्षण होय अने तेमने जे भाषा वधारे अभ्यस्त होय ते भाषाने वाहन तरीके राखीने बीजी कोई भाषा शिखववी वधारे सरळ थाय छे. एटले हुं समझुं छं त्यांसुधी ए दृष्टिए ज प्राकृतव्याकरणना रचना ओए ' प्रकृतिः संस्कृतम्' कहेलुं छे.
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