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वित्र
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अच्चंतकालम समूलयस्स, सबस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तं भासओ में पडिपुन्नचित्ता, सुणेह एगग्गहिय हि यत्थं
। अ० ३२ गा० १॥
ओ
उत्तराध्य. यन अ०३२
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जब
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अणाइकालप्पभवस्स एस्सो, सव्वस्स दुक्खस्स पमुक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविञ्चसत्ता, कमेण अचंतसुही भवंति
॥ अ० ३२ गा० १११ ॥
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