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[गाथा-२
देवादिद्रव्यव्याख्या ।
7"निश्री-कृतम्' इति यावत्, 6 कृतं अत्र जीर्णश्रेष्ठिदृष्टान्तः । *जीर्णश्रेष्ठिवत् । (आ० छा०) 7 - निश्रीकृतम् [यावत् स्वसम्बन्ध-निरासेन पर-सम्बन्धा-ऽऽपादनं निश्रा ।
"'चेइयमाऽऽहा-कम्मे (म्म-इ")त्ति जपंतं इत्थमग्गणा एसा होइ:ण आहा-कम्मं चेइय-करणं सुए भणियं " ॥१॥ [१७७३] किं कारणं ण होइ ?" "आहा-कम्मरस लक्खणा-5-भावा"। किं तस्स लक्खणं खलु ?" "भण्णइ, इणमो निसामेहि" ॥२॥ जीवमहिस्स कयं कम्मं, सो विय जडवि साहम्मी । सो वा इ तत्तिअ-भंगे अ-लिंगि सेसेसु भंगेसु ॥३॥ [१७७८] साहम्मिओ ण सत्था तस्स कयं, तेण कप्पइ जईणं । जं पुण पडिमाण कयं, तस्स कहा का ? अ-जीवत्ता ॥४॥ [१७८२] संवट्ट-मेह-पुप्फा सत्थ-निमित्तं कया जइ जईणं । ण हु लब्भा पडिसिद्धं, किं पुण पडिम-ऽटुमाऽऽरद्धं ? ॥५॥ [१७७९] तित्थ-यर-णाम-गोत्तस्स खय-ऽट्ठा अवि अ दाणि साभव्या । धम्मं कहेइ सत्था पूअं वा सेवइ तं तु ॥६॥ [१७८०] कहमुवजीवं अरहा, तं पूअं तोसं तु णो होइ ? । भण्णइ, अ-भावओ सो कम्म-ऽट्ठा कारणस्साउ ॥७॥ खीण-कसाओ अरहा कय-किचो वि जीयअणुइत्तिं ।
पडिसेवंतो वि अओ अदोसवं होइ तं पूयं ॥८॥ [१७८१] 1 चैत्यमऽत्र मङ्गला-ऽऽदि-भेदाच्चतुर्धा । 2 (१) प्रवचन-साधर्मिकम्, वेष-साधर्मिकम् ।
(२) प्रवचन-साध०, वेष-साधर्मि० न । (३) वेष-साधर्मिकम्, प्रवचन साधर्मिकं न ।
(४) प्रवचन सा० न, वेष-साधर्मिकं न । क्रमेण-१ सु-विहित-मुनि
२ श्राद्ध-साध्वाऽऽदि ३ सा० निह्यवाऽऽदि
४ सा० पाखण्डी। 3 कर्मपारतन्त्र्यमऽनुभवन् 4 सार्वत्रिक-पूजा०
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