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________________ ४५ साबाण 21पिङ्गानिका २ - वृद्धिद्वारम् । स्वोपभोगे दोषाः । [गाथा-१२ बृहच्छान्तावऽपि "शान्ति-पानीयं मस्तके दातव्यमिति" पुष्टा-ऽऽलम्बने तु जरा-स-मुक्त-जरोपद्रुतं स्व-सैन्यम् धरणेन्द्र-दत्त-पार्श्व-बिम्ब-स्नात्रा-ऽम्बु-परिक्षेपेण श्रीकृष्णेन पटू-चक्रे। एवम् श्री-पाल-मही-पाला-ऽऽदीनामऽपि बोध्यम् । इति । देवा-ऽऽदेरुपभोग-1 तथा, यथा-सम्भवम्- देवा-ऽऽदि-सम्बन्धिद्रव्यस्यस्वोपभोगे-दोषाः। 20भोग-पुष्पा-ऽऽदिकम्, साबाणहट्ट शरावक्षेत्रचङ्गेरी जवनिकावाटिका- धूप-पात्र कम्बलपाषाण कलशइष्टका वास-कुम्पिकाकाष्ठ पट्टिकावंशचामर कुम्भचन्द्रोदय ओरसिकमृत्झल्लरी कजलसुधा-ऽऽ-दिकम्, भेर्या-ऽऽदिवाद्य- जल19श्री-खण्ड-केसर प्रदीपा-ऽऽ-दिकम्, चैत्य-शाला-प्रणाल्या-ऽऽद्या-ऽऽगत-जला-ऽऽद्यऽपि च, स्व-पर-कार्ये किमऽपि न व्यापार्यम्, देव-भोग-द्रव्यवत् तदुपभोगस्याऽपि दुष्टत्त्वात् । कपाट 22श्री-करी 18कवेल्लुक 18 [नालिका-लोक-भाषया “नलिया"] । 19 [सुखड) 20 [भोग-शब्देनाऽत्र-स्वर्ण-रजत-पत्रा-ऽऽदिकं सम्भाव्यते ।] 21 [पोनी रूत-सूतर ["पूणी"] । 22 [सूर्य-मुखी] (किनायत-पाखर)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004845
Book TitleDravya Saptatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLavanyasuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages326
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Religion
File Size11 MB
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