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एक के अनुयायी क्षपणों और दूसरे के अनुयायी श्रमणों में मारपीट तक हुई, जिसका वर्णन क्षेमेन्द्र ने “ अवदान - कल्पलता" काव्य में किया हैं । और उन दोनों के निर्वाण के पश्चात् तो कितने ही भिन्न भिन्न 'पंथ' प्रत्येक के अनुयायियों में हो गये। मैं आशा करता हूँ कि इन भेदों के मिटाने में और संवाद बढ़ाने में, यह " महावीर वाणी" सहायता करेगी ।
काशी सौर १०-४-१९९६ वि०
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भगवानदास
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