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________________ १३१ ११० ० पद्यनुं आदिवाक्य नासीले निच्चकालनिच्चुग्विग्गो पइण्णवादी पढमं नाणं पन्नामयं पणीयं भत्तपमायं कम्मपरिजूरइ पवेयए अजपयं पाणिवह-मुसावयापाणे य नाइपायच्छित्त पुढवी साली पुरिसोरम पंचिंदियबालस्स पस्स बालाणं अकामं बिडमुन्भेइमं बुद्धस्स निसम्म भासाए दोसे य भोगामिसदोस पद्यनो अंक | पद्यनुं आदिवाक्य पद्यनो अंक ७४ | मणपल्हायजणणी ४४ २१ मन्दा य फासा . ११० १८९ मरिहिसि रायं ! | माणुसत्तम्मि माणुसत्ते १७५ १०८ माणुस्सं विग्गहं ४९ मासे मासे १९२ मुसावाओ य २३ १२३ मुहं मुहं माह मूलमेयमहम्मस्स मूलाओ खंधप्परसा पगामं न १३५ २३७ रागो य दोसो १५१ / रूवाणुरत्तस्स १३७ १६३ रूवे विरत्तो | रूवेसु जो १९६ रोइअनायपुत्त१९५ लभ्रूण वि ११८, ११९, २२२ लोहस्सेस वत्तणालक्खणो २२५ २७ वत्थगन्ध २०१ १७९ । वरं मे २१४ ७२ १३३ १३९ २१७ १३६ २६९ ६० १३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004697
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherUSA Jain Institute of North America
Publication Year1997
Total Pages272
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Religion
File Size8 MB
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