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________________ ५२२] સામાયિકકરણનું સ્વરૂપ. [વિશેષાવશ્યક ભાષ્ય ભાગ. ૨ किं कयमकयं कीरइ किंचातो भणइ सब्बहा दोसो । कयमिह सब्भावाओ न कीरए चिरकयघडु ब्व ॥३३६४॥ निच्चकिरियापसंगो किरियावेफल्लमपरिणिट्ठा वा। अकय-कय-कज्जमाणब्ववएसाभावया निच्चे ॥३३६५॥ अकयं पि नेय कीरइ अच्चंताभावओ खपुष्पं व ।। निच्चकिरियाइदोसा सविसेसयरा व सुत्तम्मि ॥३३६६॥ सदसदुभयदोसाओ सव्वं कीरइ न कज्जमाणं पि । इह सब्बहा न कीरइ सामाइयमओ कओ करणं ? ॥३३६७।। नणु सब्बहा न कीरइ पडिसेहम्मि वि समाणमेवेदं । पडिसेहस्साभावे पडिसिद्धं केण सामाइयं ? ॥३३६८॥ अह कयमकयं न कयं न कज्जमाणं कयं तहावि कयं । पडिसेहवयणमेयं तह सामईयं पि को दोसो ? ॥३३६९।। अकयमसुद्धनयाणं निच्चत्तणओ नभं व सामाइयं । सुद्धाण कयं घड इव कयाकयं समयसब्भावो ॥३३७०।। कीरइ कयमकयं वा कयाकयं वेह कज्जमाणं वा । कज्जमिह विवक्खाइ न कीरए सव्वहा किंचि ॥३३७१॥ रूवि त्ति कीरइ कओ कुंभो संठाणसत्तिओ अकओ। दोहि वि कयाकओ सो तरसमयं कज्जमाणो त्ति ॥३३७२॥ पुवकओ उ घडतया परपज्जाएहिं तदुभएहिं च । कज्जंतो य पडतया न कीरए सव्वहा कुंभो ॥३३७३॥ वोमाइ निच्चयाओ न कीरई दब्बयाइ वा सव् । कीरइ य कज्जमाणं समए सब्बं सपज्जयओ ॥३३७४॥ उप्पाय-ट्टिई-भंगस्स भावओ इय कयाकयं सब्बं । सामाइयं पि एवं उप्पायाईस्सहावं ति ॥३३७५॥ नणु दब्बमणत्थंतरपज्जायंतर विसेसणेहिं जुज्जेज्ज । उप्पायाइसहावं न उ सामाइयं गुणो जम्हा ॥३३७६॥ सो उप्पण्णो उप्पण्ण एव विगओ य विगय एवेह । किं सेसमस्स जेणिह कयाकयादेसया होज्जा ? ॥३३७७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004649
Book TitleVisheshavashyaka Bhasya Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorVajrasenvijay
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year
Total Pages586
LanguageGujarati, Prakrit
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_aavashyak
File Size13 MB
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