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प्रासाद प्रकरणम्
( १२५ )
उत्तरंग गांधर्व राससकी ष्टि
इंद्र की हि
लिन अरिहंत हरि
बैंडीरव की दृष्टि
जनयक्षयक्षिणी धिवीतरागकी -
१-पहला प्रकारे देवोनी दृष्टिनु स्थान
AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAMबनवानमन
वाराहावतारकी
२-बीजा प्रकारे देवोनी दृष्टिन स्थान। आ प्रकार प्रायः सर्व आचार्यों ने अधिक माननीय छ ।
लक्ष्मीनारायण नीर
शेषशायीनी दृष्-ि
पार्वती की दृष्टि
-
शिवदृष्टि
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