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________________ ३१ शतक १७.-उद्देशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरोहितो मूले निवत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव-पंचहि किरियाहिं पुट्टा, जे वि य णं से जीवा अहे बीससाए पञ्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटुंति ते वि णं जीवा काइयाए जाव-पंचहि किरियाहिं पुट्ठा । ९. [प्र०] पुरिसे णं भंते ! रुक्खस्स कंदं पचालेइ०१ [उ.] गोयमा! तावं च णं से पुरिसे जाव-पंचहि किरियाहिं पुटे, जेसि पिणं जीवाणं सरीरोहिंतो मूले निवत्तिए, जाव-बीए निष्पत्तिए ते विणं जीवा पंचहि किरियाहिं पुट्ठा । १०. [प्र०] अहे णं भंते! से कंदे अप्पणो० उ०] जाव-चाहिं पुढे जेसि पिणं जीवाणं सरीरोहिंतो मुले निष्वत्तिए, खंधे निश्वत्तिए, जाव-चउहि पुट्ठा; जेसि पि णं जीवाणं सरीरोहिंतो कंदे निष्पत्तिए ते वि य णं जीवा जाव-पंचहिं पुट्ठा; जे वि य से जीवा अहे बीससाए पच्चोवयमाणस्स जाव-पंचहिं पुट्ठा, जहा कंदे, एवं जाव-धीयं । .११. [प्र० कति णं भंते! सरीरगा पन्नत्ता [उ०] गोयमा! पंच सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-१ ओरालिए, जावफम्मए । १२. [प्र०] कति णं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ? [उ०] गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता, तं जहा-१ सोइंदिए, जाव-५ फार्सिदिए । १३. [प्र०] कतिविहे णं भते! जोए पण्णत्ते ? [उ०] गोयमा ? तिविहे जोए पण्णत्ते, तं जहा-मणजोए, वयजोए, कायजोए। १४. [प्र०] जीवे णं भंते! ओरालियसरीरं निवत्तेमाणे कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, एवं पुढविकाइए वि, एवं जाव-मणुस्से । १५. [प्र०] जीवा णं भंते! ओरालियसरीरं निष्पत्तेमाणा कतिकिरिया? [उ०] गोयमा! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि; एवं पुढविकाइया वि, एवं जाव-मणुस्सा । एवं वेउधियसरीरेण वि दो दंडगा, नवरं जस्स अत्थि वेउ नीपज्युं छे ते जीवोने कायिकी यावत्-चार क्रियाओ लागे. वळी जे जीवोना शरीरथी मूळ नीपज्युं छे ते जीवोने कायिकी यावत्-पांच क्रियाओ लागे. तथा जे जीवो खाभाविक रीते नीचे पडता मूळना उपग्राहक-उपकारक छे ते जीवोने पण कायिकी वगेरे पांच क्रियाओ लागे छे. ९. [प्र०] हे भगवन् । कोइ पुरुष वृक्षना कंदने हलावे तो तेने केटली क्रिया लागे! [उ०] हे गौतम | कंदने हलावनार ते पक्षना कन्द चला बनारने क्रियापुरुषने यावत्-पांच क्रियाओ लागे. तथा जे जीवोना शरीरथी मूळ यावत्-बीज नीपज्युं छे ते जीवोने पण पांच क्रियाओ लागे छे. . , १०. [प्र०] हे भगवन् ! त्यार पछी ते कन्द पोताना भारने लीधे नीचे पडे अने यावत्-जीवोनो घात करे तो ते पुरुषने केटली कन्दने किया. क्रियाओ लागे ! [उ०] ते पुरुषने यावत्-चार क्रियाओ लांगे. [ साक्षात् घातक नहि होवाथी प्राणातिपातक्रिया न लागे. ] तथा जे जीवोना शरीरोथी मूळ, स्कंध वगेरे नीपज्यां छे ते जीवोने परंपराए घातक होवाथी प्राणातिपात क्रिया सिवाय चार क्रियाओ लागे, अने जे जीवोना शरीरोथी कंद नीपज्यो छे ते जीवोने यावत् पांचे क्रियाओ लागे. वळी जे जीवो स्वाभाविक रीते नीचे पडता ते कंदना उपकारक होय ते जीवोने पण पांचे क्रियाओ लागे. जेम कंद संबन्धे वक्तव्यता कही तेम यावत्-बीज संबन्धे पण जाणवी. ११. [प्र०) हे भगवन् ! केटलां शरीरो कह्यां छे ! [उ०] हे गौतम ! पांच शरीरो कह्यां छे, ते आ प्रमाणे-१ औदारिक, यावत्- शरीरो. ५ कार्मण. १२. [प्र०] हे भगवन् ! केटली इन्द्रियो कही छे ! [उ०] हे गौतम ! पांच इन्द्रियो कही छे, ते आ प्रमाणे-१ श्रोत्रेन्द्रिय, यावत्- इन्द्रियो. ५ स्पर्शेन्द्रिय. १३. [प्र०] हे भगवन् ! योग केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम ! योग त्रण प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-मनयोग, वचनयोग अने काययोग. १४. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक शरीरने बांधतो जीव केटली क्रियावाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! *औदारिक शरीरने बांधतो औवारिकादि शरीर ने बांधतो जीव फेटजीव कोइवार त्रण क्रियावाळो, कोइवार चारक्रियावाळो अने कोइवार पांच क्रियावाळो होय. ए रीते पृथिवीकायिक संबन्धे कहेवू. तथा ए ली क्रिया करे। प्रमाणे दंडकना क्रमथी यावत्-मनुष्य सुधी जाणवू. १५. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक शरीरने बांधता अनेक जीवोने केटली क्रियाओ लागे ! [उ.] हे गौतम ! रोओने कदाचित् अनेक जीवो फेट की क्रिया करे। प्रण क्रियाओ, कदाचित् चार क्रियाओ अने कदाचित् पांच क्रियाओ लागे. ए प्रमाणे यावत् दंडकना क्रमथी पृथिवीकायिको सुधी योग. १४* ज्यारे औदारिक शरीरने बांधतो जीव ज्या सुधी वीजा जीवोने परितापादि न उत्पन्न करे त्यांसुधी तेने कायिकी, अधिकरणिफी अने प्रादेषिकीएग क्रियाओ लागे, ज्यारे परने परितापादि उत्पन्न करे त्यारे तेने पारितापनिकी सहित चार कियाओ लागे, अने अन्य जीवनी हिंसा करे सारे तेने प्राणातिपात सहित पांच क्रियाओ लागे.-टीका. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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