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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १६.-उद्देशक १. १३. [प्र. जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं निवत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं ! [उ.] गोयमा! अधिकरणी वि अधिकरणं पिप्र०] से केणटेणं भंते! एवं पुष्पह-अधिकरणी वि अधिकरणं पिउ०] गोयमा! अविरतिं पद से तेणटेणं जाव-अधिकरणं पि।
१४. [प्र०] पुढविकाइएण णं भंते ! ओरालियसरीरं निधत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव-मणुस्से । एवं वेउधियसरीरं पि, नवरं जस्स अस्थि ।
१५. [प्र०] जीवे णं भंते! आहारगसरीरं निश्वत्तेमाणे किं अधिकरणी-पुच्छा । [उ.] गोयमा! अधिकरणी वि, अधिकरणं पि।[प्र०] से केणटेणं जाव-अधिकरणं पि! [उ०] गोयमा! पमायं पडुच, से तेणटेणं जाव-अधिकरणं पि। एवं मणुस्से वि, तेयासरीरं जहा ओरालियं, नवरं सवजीवाणं भ
१६. [प्र.] जीवे णं भंते! सोइंदियं निवत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं? [30] एवं जहेव ओरालियसरीरं तहेव सोइंदियं पि भाणियचं, नवरं जस्स अत्थि सोइंदियं, एवं चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाण वि, नवरं जाणियचं जस्स जं अस्थि।
१७. [प्र०] जीवे णं भंते! मणजोगं निवत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं? [उ०] एवं जहेव सोइंदियं तहेव निरषसेस, वाजोगो एवं चेव, नवरं एगिदियवजाणं । एवं कायजोगो वि, नवरं सघजीवाणं, जाव-वेमाणिए । 'सेवं भंते ! सेवं भंतेति ।
सोलसमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ।
बौदारिक शरीरने पोपतो बीब HTS मधिकरण प्रथिवीकायिक.
भावारक शरीरने वाचतो मधिकरणी फे अधिकरण
१३. [प्र०] हे भगवन् । औदारिक शरीरने बांधतो जीप अधिकरणी छे के अधिकरण छे ! [उ०] हे गौतम! ते अधिकरणी पण छे अने अधिकरण पण छे. [प्र०] हे भगवन् । ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'औदारिक शरीरने बांधतो जीव अधिकरणी छे अने अधिकरण पण छे ! [उ०] हे गौतम । अविरतिने आश्रयी. अर्थात् अविरतिरूप हेतुथी पूर्व प्रमाणे यावत्-अधिकरण पण छे.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक शरीरने बांधतो "पृथ्वीकायिक जीव अधिकरणी छे के अधिकरण छे! [उ.1 हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे जाणवं. अने ए प्रमाणे यावत् मनुष्यो सुधी जाणवू. ए प्रमाणे वैक्रिय शरीर संबंधे पण समजवू, पण तेमां ए विशेष के के जे. जीवोने जे शरीर होय तेमना विषे ते शरीर संबन्धे कहेवू.
१५. [प्र०] हे भगवन्! आहारक शरीरने बांधतो जीव अधिकरणी छे-इत्यादि प्रश्न. उ०] हे गौतम | ते अधिकरणी पण छे अने अधिकरण पण छे. [प्र०) हे भगवन् । ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के ते यावत्-'अधिकरण पण छे' ! [उ०] हे गौतम ! प्रमादने आश्रयी, अर्थात् प्रमादरूप कारणने लइने ते यावत्-'अधिकरण पण छे.' ए प्रमाणे मनुष्य संबंधे पण जाणवू.
औदारिक शरीरनी पेठे तैजस शरीर संबंधे पण कहे, पण तेमा विशेष ए छे के, [तैजस शरीर सर्व जीवोने होवाथी ] सर्व जीबोने विषे ए प्रमाणे. समजवू. एज प्रमाणे कार्मण शरीर विषे पण जाणवं.
१६. [प्र०] हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियने बांधतो जीव अधिकरणी छे के अधिकरण छे! उ०] हे गौतम | जेम औदारिक शरीरने विषे कहेलं छे तेम श्रोत्रंद्रियने विषे पण कहे. विशेष ए छे के जे जीवोने श्रोत्रंद्रिय होय तेमना विषे ते कहे. ए प्रमाणे चक्षुरिनिक घ्राणेंद्रिय, जितेंद्रिय, अने स्पर्शेद्रिय संबंधे पण जाणवू. विशेष ए के जे जीवोने जे इन्द्रिय होय तेमना विषे ते इन्द्रिय संबन्धे कहे.....
१७. [प्र०) हे भगवन् ! मनोयोगने बांधतो जीव अधिकरणी छे के अधिकरण छे ! [उ०] हे गौतम ! जेम श्रोत्रंद्रियना विषयमां का छे तेम आ विषयमा पण बधुं कहे. ए प्रमाणे वचनयोग संबन्धे पण समजवं. विशेष ए के वचनयोगमा एकेंद्रिय जीवो न लेवा. ए प्रमाणे काययोग संबन्धे जाणवू. अने तेमां विशेष ए के काययोग सवैजीवोने होवाथी सर्वना विषे ते समजवू. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी जाणवं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.'
सोळमा शतकमा प्रथम उद्देशक समाप्त.
मोवेन्द्रिय
मनोयोग.
नारक, देव, वायु, अन पंचेन्द्रिय तिर्थच भने मनुष्यने लायी तेने वैक्रिय शरीर होय छे. जुना प्रथम प्रश्न सामान्य जीवजातिने साना
१४हवे अहिं दंडकना क्रमथी प्रश्न करे छे. तेमां औदारिक शरीर नारक भने देवोने होतुं नथी, तेथी नारक भने असुरादि देवीने छोटी पृथिवीकायिकने आश्रयी प्रश्न को छे.
जनारक, देव, वायु, पंचेन्द्रिय तिर्यच अने मनुष्यने क्रियशरीर होय छे. तेमां नारक भने देवने भवप्रत्यय वैक्रियशरीर होय छे एटले के तेमने जन्मश्रीज ए शरीर प्राप्त होय छे, अने पंचेन्द्रिय तिर्यच भने मनुष्यने लब्धिप्रत्यय वैक्रिय शरीर होय छे. एटले के वैक्रिय शरीर करवानी जेने खास शक्ति प्राप्त थई होय तेने ज होय छे. वायुकायने पण वैक्रिय शक्ति प्राप्त थयेली होवाथी तेने वैक्रिय शरीर होय छे. जुओ-भग० सं० २ ० ३ १.४ पृ. ८५.
१५ आहारक शरीर संयत मनुष्यने ज होय छे, तेथी मूळ प्रश्न मनुष्यने उद्देशीने करवो जोइए, छतां प्रथम प्रश्न सामान्य जीवजातिने उद्देशीने करवामां आव्यो छे, तेनुं कारण मात्र क्रमर्नु अनुसरण छे. कारण के अहिं प्रथम दरेक प्रश्न सामान्य जीवसमूहने उद्देशीने करवामां आवे छे अने पछीना प्रश्नो दंडकना क्रम प्रमाणे करवामां आवे छे. अहिं अविरतिनो अभाव होवाची अविरति अधिकरण नथी. पण प्रमादरूप अधिकरण छ.
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