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________________ योजयोज प्रमाण एकेन्द्रियनो उपपात. कल्योजकस्योजराशिरूप एकेन्द्रियोनो उत्पाद. प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रियो नो उत्पाद. श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे शतक ३५. – उद्देशक २० 1 १९. [प्र० ] तेयोय तेयोयएगिंदिया णं भंते! कअहिंतो उववजंति ? [30] उववाओ तदेव । परिमाणं पनरस वां, संखेजा था, असंखेजा वा, अनंता वा सेसं तहेव जाव- अनंतखुत्तो । एवं पपसु सोलससु महाजुम्मेसु एको गमओ । नवरं परिमाणे नाणत्तं - तेयोयदावरजुम्मेसु परिमाणं चोइस वा, संखेज्जा वा, असंखेजा वा, अनंता वा उववज्रंति । तेयोगकलियोगेसु तेरस वा संखेजा वा, असंखेजा वा अणंता वा उववजंति । दावरजुम्मकडजुम्मेसु अट्ठ वा, संखेज्जा वा, असंखेजावा, अनंता वा उववज्रंति । दावरजुम्मतेयोगेसु एक्कारस वा संखेजा वा, असंखेजा वा, अनंता वा उववज्जंति । दावरजुम्मेदावरजुम्मेसु दस वा संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा, दावरजुम्मकलियोगेसु नव वा, संखेज्जा वा, असं खेज्जा वा, अनंता वा उववजंति । कलियोगकडजुम्मे चत्तारि वा, संखेज्जा वा, असंखेजा वा, अनंता वा उववजंति । कलियोगतेयोगेसु सत्त वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा उववजंति । कलियोगदावरजुम्मेसु छ वा संखेजा वा, असंखेजा बा, अनंता वा उववजंति । ३४२ २०. [०] कलियोगकलियोगएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? [अ०] उववाओ तहेव । परिमाणं पंच वा, संखेजावा, असंखेजा वा, अनंता वा उचवजंति ! सेसं तहेव जाव- अनंतखुत्तो 'सेवं भंते! सेवं भंते' ! ति । पणतीस मे सए पढमो उद्देसो समत्तो । १९. [प्र० ] हे भगवन् ! त्र्योन्योजराशिरूप एकेंद्रियो क्यांथी आवी उत्पन्न थाय छे ! [उ०] उपपात पूर्वनी पेठे जाणवो. परिमाण --- प्रतिसमय पंदर, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. बाकी बधुं तेमज जाणवुं यावत् - ' पूर्वे अनंतवार उत्पन्न या छे'. ए प्रमाणे ए सोळे महायुग्मोमां एकज प्रकारनो गम जाणवो. मात्र परिमाणमां विशेषता छे - योजद्वापरयुग्ममां परिमाण चौद संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. त्र्योजकल्योजमां तेर, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. द्वापरयुग्मकृतयुग्मम आठ, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. द्वापरयुग्मत्रयोजमां अगियार, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. द्वापरयुग्म - द्वापरयुग्ममां दस, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. द्वापरयुग्मकल्योजमां नव, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न याय छे. कल्योजकृतयुग्ममां चार, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. कल्योजत्रयोजमां सात, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. कल्योजद्वापरयुग्ममां छ, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. २०. [प्र०] हे भगवन् ! कल्योजकल्योजराशिप्रमाण एकेंद्रियो क्यांथी आवी उत्पन्न थाय छे ! [उ०] उपपात पूर्वनी पेठे जाणवो. परिमाण - पांच, संख्याता, असंख्याता के अनंत उत्पन्न थाय छे. बाकी बधुं यावत् - ' पूर्वे अनंतवार उत्पन्न थयां छे' त्यां सुधी तेमज जाणवुं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते 'एमज छे'. पांत्रीशमा शतकमां प्रथम उद्देशक समाप्त. बीओ उद्देो । १. [प्र०] पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववजंति ? [ उ०] गोयमा ! तदेव एवं जद्देव पढमो उद्देसभ तद्देव सोलसखुत्तो बितिओ वि भाणियचो, तहेव सवं । नवरं इमाणि य दस नाणत्ताणि - १ ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं; उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं । २ आउयकम्मस्स नो बंधगा, अबंधगा । ३ आउयस्स नो उदीरगा, अणुदीरगा । ४ नो उस्सासगा, नो निस्सासगा, जो उस्सासनिस्सासगा । ५ सत्तविहबंधगा, नो अट्ठविबंधगा । द्वितीय उद्देश. १. [प्र० ] हे भगवन् ! जेने उत्पन्न थयाने पहेलो समय थयो छे एवा कृतयुग्मकृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियो क्यांची आवी उत्पन्न' थाय छे ? [उ०] हे गौतम! तेमज जाणवुं. जेम प्रथम उद्देशक कह्यो तेमज [ सोळ राशिने आश्रयी ] सोळ वार पाठना कथनपूर्वक बीजो उद्देशक कहेवो. बाकी बधुं तेमज कहेवुं. परन्तु दस बाबत विशेषता छे - ( १ ) तेओनी अवगाहना - शरीरनुं प्रमाण जघन्य अंगुलना असंख्यातमा भागनी अने उत्कृष्ट अंगुलना असंख्यातमा भागनी होय छे. (२) आयुषं कर्मना बंधक नथी, पण अबंधक होय. छे. (३) आयुष कर्मना उदीरक नथी, पण अनुदीरक होय छे. (४) उच्छ्रासवाळा नथी, निःश्वासवाळा नथी अने उच्छ्वासनिःश्वासवाळापण नथी. (५) सात प्रकारना कर्म बंधक होय छे, पण आठ प्रकारना बंधक नथी होता. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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