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________________ ३३२ , श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे- शतक ३४.-एकेन्द्रियशतक १.-उद्देशक १. २९. [प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविक्काइया णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ बंधति ? [उ०] गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि, अट्टविहबंधगा वि, जहा पगिदियसएसु जाव-पजत्ता यायरवणस्सइकाइया। ३०. प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविकाइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति? [उ०] गोयमा! चोइस कम्मप्पगडीओ वेदेति, तंजहा-नाणावरणिज, जहा एगिदियसएसु जाव-पुरिसवेदवझं, एवं जाव-बादरवणस्सइकाइयाणं पजत्तगाणं । __३१. [प्र०] एगिदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? किं नेरइएहितो उववजंति १ . [उ०] जहा वकंतीए पुढविक्काइयाणं उववाओ। . ३२. [प्र०] एगिदियाणं भंते ! कइ समुग्घाया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! चत्तारि समुग्घाया पन्नत्ता, तंजहा-वेदणासमुग्घाए, जाव-वेउचियसमुग्घाए। ३३. [प्र०] एगिदिया णं भंते ! किं तुल्लद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ? तुल्लट्ठितीया वेमायविसेसाहियं कम्म पकरेंति ? वेमायद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ? वेमायद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ? [उ.] गोयमा! अत्थेगइया तुल्लट्टितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, अत्थेगइया तुल्लद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, अत्थेगइया वेमायद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, अत्थेगइया मायद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति । प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'अत्थेगइया तुल्लद्वितीया जाव-वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति' ? [उ०] गोयमा ! एगिदिया चउधिहा पन्नत्ता, तंजहा-अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा १, अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा २, अत्थेगइया विसमाउया समोववन्नगा ३, अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा ४ । तत्थ णं जे ते समाउया समोववनगा ते णं तुलद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति १, तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववनगा ते णं तुल्लद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति २, तत्थ णं जे ते विसमाउया समोववनगा ते णं वेमायद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ३, तत्थ णं जे ते विसमाउया वेदन. अपर्याप्त सूक्ष्म पृथि- ___२९. [प्र०] हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिको केटली कर्मप्रकृतिओ बांधे छे ! [उ०] हे गौतम ! सात कर्मप्रकृतिओ वीकायिकने कर्म - बांधे छे अथवा आठ कर्मप्रकृतिओ बांधे छे-इत्यादि जेम एकेंद्रियशतकमां कयुं छे तेम यावत्-पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक सुधी जाणवू. बन्ध. एकेन्द्रियने कमैनुं ३०. [प्र०] हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिको केटली कर्मप्रकृतिओने वेदे ? [उ० हे गौतम ! तेओ चौद कर्मप्रकृतिओने वेदे छे. ते आ प्रमाणे-ज्ञानावरणीय ( वगेरे आठ प्रकृतिओ, बेइन्द्रियादि चार आवरण, स्त्रीवेद अने पुरुषवेदप्रतिबन्धक कर्म )-इत्यादि जेम एकेंद्रिय शंतकमां कर्तुं छे तेम यावत्-पुरुषवेदप्रतिबन्धक कर्मप्रकृति सुधी यावत्-पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक सुधी जाणवू. एकेन्द्रियोनो ३१. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवो क्याथी आवी उत्पन्न थाय ! शुं नैरयिकोथी आवी उत्पन्न थाय-इत्यादि. [उ०] जेम •प्रपात. "व्युत्क्रांतिपदमां पृथिवीकायिकोनो उपपात कह्यो छे तेम अहीं जाणवो. एकेद्रियने ३२. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवोने केटला समुद्घातो कह्या छे ! उ०] हे गौतम ! तेओने चार समुद्घातो कह्या छे, समुदात. ते आ प्रमाणे-१ वेदनासमुद्घात, (२ कषाय, ३ मरण) अने यावत्-४ वैक्रियसमुद्घात. एकेन्द्रियो शं तुल्य ३३. [प्र०] हे भगवन् ! शुतुल्य स्थितिवाळा-समान आयुषवाळा एकेंद्रिय जीवो तुल्य अने विशेषाधिक कर्मनो बन्ध करे छे! तुल्य स्थितिवाळा एकेंद्रिय जीवो परस्पर भिन्न विशेषाधिक कर्मबन्ध करे छे ? भिन्न भिन्न स्थितिवाळा परस्पर तुल्य विशेषाधिक - करे। कर्मबन्ध करे छे के भिन्न भिन्न स्थितिवाळा परस्पर भिन्न विशेषाधिक कर्मबन्ध करे छे ! [उ०] हे गौतम ! १ केटलाक तुल्य स्थितिवाळा एकेंद्रियो परस्पर तुल्य विशेषाधिक कर्मबन्ध करे छे, २ केटलाक तुल्य स्थितिवाळा भिन्न भिन्न विशेषाधिक कर्मबन्ध करे छे, ३ केटलाक भिन्न भिन्न स्थितिवाळा तुल्य विशेषाधिक कर्मबन्ध करे छे अने ४ केटलाक भिन्न भिन्न स्थितिवाळा भिन्न भिन्न विशेषाधिक कर्मबंध करे छे. [प्र. हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहो छो के केटलाक एकेन्द्रियो तुल्यस्थितिवाळा यावत्-भिन्न भिन्न विशेषाधिक कर्म करे छे ? [उ०] हे गौतम ! एकेंद्रिय जीवो चार प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-१ केटलाक समान आयुषवाळा अने साथे उत्पन्न थयेला, २ केटलाक समान आयुषवाळा अने जुदा जुदा समये उत्पन्न थयेला, केटलाक जुदा जुदा आयुषवाळा अने साथे उत्पन्न थयेला, अने केटलाक जुदा जुदा आयुषवाळा अने जुदा जुदा समये उत्पन्न थयेला. तेमा जे समान आयुषवाळा अने साथे उत्पन्न थयेला होय छे तेओ तुल्यस्थितिवाळा छे अने तेओ तुल्य विशेषाधिक कर्मबंध करे छे. जेओ समान आयुषवाळा अने जुदा जुदा समये उत्पन्न थयेला छे तेओ तुल्यस्थितिवाळा छे अने जुदं जुदं विशेषाधिक कर्म बांधे छे. जेओ जुदा जुदा आयुषवाळा अने साथे उत्पन्न थयेला छे तेओ जुदी जुदी स्थितिवाळा छे अने तुल्य विशेषाधिक कर्मबंध करे छे. तथा जेओ जुदा जुदा आयुषवाळा ३१ प्रज्ञा० पद ६ प० २१२-१. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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